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ये क्या हो गया है?



जो मिट्टी को जान देता है, किसान!

उसपर गद्दारी का इल्ज़ाम हो गया है!!


हक मांग रहा है बस अपने पसीने का,

पर कान सल्तनत का राम हो गया है!


पहुंचते नहीं हाथ दूर बहुत है,

ये कैसा संविधान हो गया है?



राम बोलने वाला ही भगवान हो गया है,

यूं कत्ल कितना आसान हो गया है?


अल्लाह का फ़ैसला अब भगवान करेगा,

इंसानियत का काम तमाम हो गया है!


फ़ैसला ये की तेरा मजहब क्या है ,

गुनहगार का नाम मुसलमान हो गया है



इंसाफ देने वाले सब पंसारी बने हैं,

वजन देख सारा हिसाब हो गया है!


गलत है! पर भीड़ की अकीदत है ये,

जो तोड़ा वही उनका मकान हो गया है!





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