इंसाँ होने की कोशिश हज़ार हैं,
पर अकेला बेचारा क्या करेगा!
पर अकेला बेचारा क्या करेगा!
सब अपनी शोहरत के सामान हैं
बेवजह ही आईने बदनाम हैं
हमसे नहीं होता कामयाबी का खेल,
वो फिर भी कहते हैं हम इंसान हैं
और हमको लगता है भगवान हैं
अगर सच अद्वैत है तो दोगला है
मज़हब का नतीजा बड़ा खोखला है
शायद कोई रख्खे की काम का सामान हैं
हम क्यों किसी के काबिल बनें
आचरण के दर्ज़ी तमाम हो गए
इंसान नापने के काम आम हो गए
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