पहले बनते थे तारीख, अब मुर्दों में जान नहीं है
गरदन ऊँची है अब भी, पर अब, वो शान नहीं है
नाच इशारों का हरसू, बस कठपुतली नाम नहीं है!
आवाजें अब भी मौजूद है, सुनने वाले कान नहीं हैं
आइना सामने है पर खुद से पहचान नहीं है!
चलता है हर कोई, पर क़दमों के निशान नहीं हैं
मुड कर देखें रस्तों को अब ऐसे अनजान नहीं हैं !
मुड कर देखें रस्तों को अब ऐसे अनजान नहीं हैं !
पलक झपकती चोरी से, सामने भगवान नहीं है?
भगवानों के "बड़े" धंधे होते हैं,
यकीं से कि भक्त अंधे होते हैं,
कहीं Shरी , कहीं बाबा शुरु होते हैं
कई नामों के यहां गुरु होते हैं!
जाना है सबको एक दिन, पर कोई मेहमान नहीं हैअपने प्रभुत्व पर यकीन है ,या ये खबर किसी को नहीं है
स्वर्ग पधारे /सिधारे हैं प्रभू ,अब ये उनकी जमीं नहीं है !
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