आज सुबह फिर बोलती मिली,
पूछ रही थी हाल,
कर के आसमान,
गुलाबी लाल,
क्या कमाल,
सुबह एक खोई करवट,
उसका क्या मलाल,
और फिर एक चिड़िया,
बनकर, रात,
चहचहाती मिली,
अंधरों में धुली,
खिली, खुली,
सबको सुलाते,
सहलाते, सपनों में,
झुलाते, थकी नहीं,
रात,
सुबह के साथ,
खेलने को तैयार,
दोनों के बीच कितना
प्यार, दुलार!
और आप हम
क्यों परेशां हैं?
पूछ रही थी हाल,
कर के आसमान,
गुलाबी लाल,
क्या कमाल,
सुबह एक खोई करवट,
उसका क्या मलाल,
और फिर एक चिड़िया,
बनकर, रात,

अंधरों में धुली,
खिली, खुली,
सबको सुलाते,
सहलाते, सपनों में,

रात,
सुबह के साथ,
खेलने को तैयार,
दोनों के बीच कितना
प्यार, दुलार!
और आप हम
क्यों परेशां हैं?
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