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फ़रवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रकृति रिश्तों कि . . . . रिश्तॊं कि प्रकृति. . . !

इंसान ने लाखों व्हेल मछलियों को मारा है और अब भी... क्या कुछ ऐसा मिला है, जो शायद दूसरे तरीकों से हाथ नहीं आता? पर शायद ख़त्म करना मानवी शौक है हिरनों कि चपलता को, चीते कि  सपलता को ग़ज कि गर्जन को सच को, सर्जन को हमें एक दुसरे को ख़त्म करने का शौक है इस धरा पर, इंसानी इतिहास में, आज तक कोई पड़ाव नहीं जहाँ इन्सान ने मानवता को मारना ख़त्म किया हो अगर हम कर सकें और करना चाहिए, कि प्रकृति से, धरती से एक गहरा समयसिद्ध रिश्ता जोड़ें वृक्षों के ठहराव से झुरमुटों के फैलाव से फूलों के स्वार्थ से, कि दुनिया खुबसूरत करनी है तो खुद खुबसूरत बनो घाँस कि विनम्र हरियाली से बादलों कि निश्चिंत अस्थिरता से अगर हम ऐसा कर सकें, तो फिर शायद ही कोई ऐसा कारण धुंढ़ पायें, जो हमें, एक, दुसरे इन्सान को मारने के लिए बाधित-प्रेरित करें (जिददु कृष्णमूर्ति के विचारो से अनुरचित)

बिखरे गौहर!

बिखरे गौहर आराम थे फरमाते,  हाथ लगे सुराग, हैं अब नज़र आते   क्यों नापते हो रिश्तों कि लम्बाई क़त्ल तराश होना है, फिर क्यों तलाश हीरे कि तलब बेहतरीन है, तो क्या खाक इबादत पीरे कि मेरे होने में ही इश्क-ए-अज़ीज़ है  फिर क्यों आशुफ़्तगी है कसर ढूँढ कर कहते हो कि कोई कोताही खली है हमारा साथ मुकम्मल है, क्यों ये बात कल है जिन्दगी क्या सिर्फ लम्हों कि फसल है? हमारे साथ कि बेहतर ये आसानी है दुनिया गयी भाड़ में, आपकी हम से सारी परेशानी है  सोच लो हर पल एक लम्हा हो जायेगा गुजरा आँखों से मंजर हो जाएगा, जी लो आज को हर घडी, बीता, कौन जाने कब पिंजर हो जाएगा होंसला साथ हो भी तो, बिना यकीं क्या होगा,  नजर आसमान में सही  पैर जमीं पर होगा देख लो   बिखरे हुए रंग, तस्वीर फिर भी एक है उम्मीद आसमानों कि, इरादे पर भी नेक हैं नजरें चुरा कर नज़र आते हो ... अमां! क्यों अपने हुस्न से कतराते हो कातिल हो या खुद का शिकार,  नजरें बयां कर रही हैं कई अल्फाज़..  ये अंदाज़ है...

वन्दे मातरम

माँ तुझे प्रणाम चपल  जल धारों में रचित प्रकृति की सुन्दरता में हरित शीतल हवाओं में प्रफुल्लित खेतों खलियानों में लहराती माँ शक्ति विदित माँ स्वेच्छित चमकते चाँद के स्वप्न में गौरान्वित खेलती शाखों और उद्वत लहरों पर विराजित सम्रद्ध तरुवरों में आच्छादित माँ तुम्हारे गोद में सुगमित मधुर आनंदित माँ तेरे पैरों में मस्तिक मधुर सुर वन्दित माँ तुझे प्रणाम (और सरल भाषा में) माँ तुझे प्रणाम बहते पानी की तीव्रता से तैयार  प्रकृति की हरियाली से चमकें दिशाएं चार खुशहाल हवाओं की ठंडक खेतों और  मैदानों में लहराती, माँ तेरी ताकत माँ स्वतंत्र चांदनी  रातों के सपनो की शान झूलती शाखों और गूंजती लहरों की जान फलदार पेड़ों  से लिपटी मुस्कराती खिलखिलाती माँ तेरे पैरों में सर झुकाते मधुर सुर मे...

किसी की खोज , किसी की सोच

यकीं करो मन्नत आप की कबूल हो,  हालात की कोशिशें फ़िज़ूल हों जो लम्हे वजूद को जायज़ करते हैं,  वो कायनात को कबूल हों और एक रास्ता आप के सफ़र का मुन्तज़िर है वक़्त की आँखों, आपके लम्हे सर हैं! गुजर जाइए आप बेहिचक कायनात आप की कोशिशों को पर है!! लम्हे आप के मोहताज़ हैं, क्यों रुके हुए से आप हैं आप कदम तो उठाइये, मौके उड़ते हुए बाज़ हैं! बात तब है जब डोर अपने हाथ में आप ही अपने राम है,  सफ़र ही अपना काम है जिन्दगी हाथों का जाम है, कहिये कहाँ अगली शाम है आइने मै देखिये और कहिये, "क्या बात है" दुनिया को मिली सौगात है, जो सवाल आपके पास है इस सफ़र में आपकी साँस है!! गुजर गयी वो रात है,  रह गयी सो बात है, जो सामने, वो तेरे हाथ है, कहिये आप, क्या ज़ज्बात है?? कौन मिलेगा आपको आपसे बेहतर नए सफ़र के नए काफिले, बड़ जायेंगे कुछ फासले अपने एहसासों को पास ले,  और एक ठंडी साँस ले आस भी है, तलाश भी है, रास भी है एहसास भी प्यास भी है प्रयास भी,  आप हमसफ़र है अपने सफ़र के जो होता है अच्छे ...

निसर्ग

निसर्ग से अगर तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं   तो क्या इंसान से है? निसर्ग यहीं है  ..यहीं है पेड़, पौधे, नदी, झील सारी विलक्षण सरजमीं और उसकी सुन्दरता और अगर हम उस सब से जुड़ नहीं सकते, तो क्या हम एक दुसरे से भी जुड़ सकते है? ? (जिददु कृष्णमूर्ति के विचारो से अनुरचित)

कुछ होने का सफ़र!

किसकी सुनें क्या तुम को एहसास है, बात तुम में भी खास है जिनको नहीं दिखता उनको कहो की घांस है   जो दिखता है  सच है सच के सिवा कुछ नहीं  . . . तुम सच हो किसी की राय नहीं, दूसरे के समझ की सराय नहीं सच के हिस्से नहीं होते, मुश्किल समझना है वर्ना किस्से नहीं होते  खुद को मुश्किल मत करो, आज को कल मत करो,  गुजरा है वो पल है, उसको (कर्मों का) फल मत करो साथ चलोगे तो समझोगे एक पंछी की उड़ाने, कौन समझे कौन जाने कैसे पहचानेंगे वो जो तेरे पंखों से अंजाने कदम कहाँ, नजर कहाँ, खबर कहाँ, कहाँ निशां बदल रही है अब दिशाएँ, कौन सा है अब जहाँ. तैयारी   है?   मोड़ मिले तो मुड़ जाना, नए रास्तों से जुड़ जाना धुंढ लेगी जिन्दगी तुमको, पंख मिले तो उड़ जाना लगता है जिन्दगी में कुछ बदलाव आया है, काम आप लोगों का लगाव आया है कुदरत से सवालों का जवाब आया है बिना मुश्किल कब आसमान का अंदाज़ आया है   रास्ता हमसफ़र हो तो सफ़र क्या कीजे, ज़र्रा कायनात हो तो तो नजर क्या कीजे बूँद समंदर है फरक क्या कीजे,...