इंसान ने लाखों व्हेल मछलियों को मारा है और अब भी... क्या कुछ ऐसा मिला है, जो शायद दूसरे तरीकों से हाथ नहीं आता? पर शायद ख़त्म करना मानवी शौक है हिरनों कि चपलता को, चीते कि सपलता को ग़ज कि गर्जन को सच को, सर्जन को हमें एक दुसरे को ख़त्म करने का शौक है इस धरा पर, इंसानी इतिहास में, आज तक कोई पड़ाव नहीं जहाँ इन्सान ने मानवता को मारना ख़त्म किया हो अगर हम कर सकें और करना चाहिए, कि प्रकृति से, धरती से एक गहरा समयसिद्ध रिश्ता जोड़ें वृक्षों के ठहराव से झुरमुटों के फैलाव से फूलों के स्वार्थ से, कि दुनिया खुबसूरत करनी है तो खुद खुबसूरत बनो घाँस कि विनम्र हरियाली से बादलों कि निश्चिंत अस्थिरता से अगर हम ऐसा कर सकें, तो फिर शायद ही कोई ऐसा कारण धुंढ़ पायें, जो हमें, एक, दुसरे इन्सान को मारने के लिए बाधित-प्रेरित करें (जिददु कृष्णमूर्ति के विचारो से अनुरचित)
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।