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किसी की खोज , किसी की सोच

यकीं करो
मन्नत आप की कबूल हो, 
हालात की कोशिशें फ़िज़ूल हों
जो लम्हे वजूद को जायज़ करते हैं, 

वो कायनात को कबूल हों

और एक रास्ता आप के सफ़र का मुन्तज़िर है
वक़्त की आँखों, आपके लम्हे सर हैं!
गुजर जाइए आप बेहिचक
कायनात आप की कोशिशों को पर है!!

लम्हे आप के मोहताज़ हैं,

क्यों रुके हुए से आप हैं
आप कदम तो उठाइये,

मौके उड़ते हुए बाज़ हैं!


बात तब है जब डोर अपने हाथ में
आप ही अपने राम है, 
सफ़र ही अपना काम है
जिन्दगी हाथों का जाम है,

कहिये कहाँ अगली शाम है

आइने मै देखिये और कहिये,

"क्या बात है"
दुनिया को मिली सौगात है,
जो सवाल आपके पास है
इस सफ़र में आपकी साँस है!!

गुजर गयी वो रात है, 

रह गयी सो बात है,
जो सामने, वो तेरे हाथ है,

कहिये आप, क्या ज़ज्बात है??

कौन मिलेगा आपको आपसे बेहतर
नए सफ़र के नए काफिले,

बड़ जायेंगे कुछ फासले
अपने एहसासों को पास ले, 

और एक ठंडी साँस ले

आस भी है, तलाश भी है,
रास भी है एहसास भी
प्यास भी है प्रयास भी, 

आप हमसफ़र है अपने सफ़र के

जो होता है अच्छे के लिए,
मुश्किल, महज एक रास्ता है

सच्चों के लिए!
यूँ ही परेशां क्यों होते हो
तजुर्बे पक्के होने को कच्चों के लिए

आज फिर उम्मीदें जवान हो गयीं हैं
एक कोशिश करी जो निशां हो गयी हैं,
आज जमीं हैं जो कल आसमान थी
मायनों की नयी फिर पहचान हो गयी है!!



सफ़र में प्यास नहीं गर सफ़र ही प्यास हो
सफ़र जारी है अगला मुकाम क्या हो
ठहरना भी गर काम है तो आराम क्या हो
ख्वाब बुनने का कोई वक़्त नहीं
फिर यूँ ही रात क्यों बदनाम हो?

आप पहुँच रहे है या गुजर रहे हैं
और भी पहले सफ़र रहे हैं
इस बार कुछ बात नयी है
जो गुजरी वो बात गयी है
अब देखें क़दमों का खेल!


खुद से कुछ तो बातें हो
अपने दिए की आप हो बाती,
दिन नहीं गुजरा तो रात नहीं आती
जमे पैर जमीं पर तो आप हो हाथी!

मसाला तो मिल गया माल कहाँ से आएगा
मछलियों के लिए जाल कहाँ से आएगा
जवाब तो मिल ही जाते हैं,
नयी तलाशों को सवाल कहाँ से आएगा?


जाने भी दो
गम को RUM करो
दिल दुखता है,

तो आंखें नम करो
जो नहीं हुआ वो भरम है,
कुली हो क्या?
जो गुजरे हुए को वजन करो





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पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी ...

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