बचपन से दुरी बड़ी है जवानी से खिंचाव आगे और पीछे कितने साल कतार लगाए खड़े हैं, किसकी सुने, कहाँ देखें? हड्डियों की आह सुनें, या क़दमों की चाह बालों का रंग देखें या आईने की उमंग, पतंग की उड़ान देखें या डोर की थकान, घर, दुनिया, दूकान देखें या रास्ते अनजान देखें हूँ! मम्म उम्म्म अआः जवाब नए पुराने , कुछ जल्दी में, कुछ थके हुए, जोर मारते, लगे हैं, अपने को सही साबित करने में किसका भरोसा करें? सच और सही हमेशा एक नहीं होते, और सवाल? रोज नए हैं! आजाद, उत्साहित, हर दम, नए की खोज में, हमसफ़र, हर कदम, बदलते,अपने बचपन में इठलाते, चंचल, शोख, तो फिर? अरे रे रे रे रे ! माथे को शिकन न दें, आँखों को विनम्र रहने दें, में कोई जवाब नहीं, में सवाल हूँ, पूछ लीजिये! इस नए सफ़र में आपका खैर-मकदम है! (उम्र की एक और सीडी पर स्वाति के क़दमों को नज़र)
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।