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अप्रैल, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

स्वाति सवाल

बचपन से दुरी बड़ी है  जवानी से खिंचाव  आगे और पीछे कितने साल कतार लगाए खड़े हैं, किसकी सुने, कहाँ देखें? हड्डियों की आह सुनें, या क़दमों की चाह बालों का रंग देखें  या आईने की उमंग, पतंग की उड़ान देखें  या डोर की थकान, घर, दुनिया, दूकान देखें या रास्ते अनजान देखें  हूँ! मम्म उम्म्म अआः  जवाब नए पुराने ,  कुछ जल्दी में, कुछ थके हुए,  जोर मारते, लगे हैं, अपने को सही साबित करने में किसका भरोसा करें? सच और सही  हमेशा एक नहीं होते, और सवाल? रोज नए हैं! आजाद, उत्साहित,  हर दम, नए की खोज में, हमसफ़र, हर कदम, बदलते,अपने बचपन में इठलाते, चंचल, शोख, तो फिर? अरे रे रे रे रे ! माथे को शिकन न दें,  आँखों को विनम्र रहने दें,  में कोई जवाब नहीं,  में सवाल हूँ,  पूछ लीजिये! इस नए सफ़र में आपका खैर-मकदम है! (उम्र की एक और सीडी पर स्वाति के क़दमों को नज़र)

दर्द-सर्द-गर्त!

दर्द हो कर भी नहीं हैं ये लम्हे मेरे साथ हैं पर पास नहीं हैं आस हैं पर आराम नहीं है हलचल तूफान की, पर आहट नहीं है अब किनारो पर राहत नहीं है डूब जाना, जी करता है, पर काफी होगा क्या तैरना आता है, उसका क्या?   सर्द कुछ साँसे, अलग सी आहट भी नहीं करती, एहसास जगा जाती हैं, अनजाने रास्ते, अजनबी क्यों नहीं लगते घबराहटें क्यों मुस्कराती हैं, मेरे इरादे, नक़्शे, मेरे कदम, फिर क्यों नई-सी है धड़कन ये चमक कैसी आँखों मैं है संभावनाएं, सामने न सही, उनकी आहट कानों तक पहुँचती है, खामोश साँसे सुनाई देती हैं, घेर लेती हैं, घर करती हैं, सर्द! गर्त कितनी सतहों तले गर्त के, सच जमे हैं, नज़र कहाँ से आयें? मेरे, तुम्हारे, सबके, क्यों? क्या? अलग अलग हैं? मैं , मेरा, अपना, खुद की,  यकीन, सोच, तजुर्बा, खुश्की, चुस्की, जरूरतें किसकी परिभाषाएँ, उम्मीद, आशाएं कितनी परतें हैं, एक को अनेक करती, साफ़, कुछ भी, कैसे हो? है, धूल, पर सारी कोशिशें महज एक निशान हैं, सतह पर रहते, गुनते, चुनते, बुनते सारे सच कफ़न है, गर्त के!

अपने साथ या दूसरों के हाथ

कितने डर हैं, सामने,  उम्मीदें,  कितनी लावारिस कितने यकीन दिल के, मन्नतों से हैं खारिज मेरे रास्तों से क्यों मेरे अपने अजनबी हैं, क्यों नहीं शामिल, मेरे सफर में, खुद से क्या सवाल हों, कल ना कुछ मलाल हो, वो कैसे करीबी हैं, जो दूर करते हैं? वो कैसी मोहब्बत जो इज़ाज़त ही नहीं देती? मैं अपने साथ हूँ,  या दूसरों की बात? क्या समझे है कोई मेरे सच? ये सफर आज़ादी का है? या दूसरों की बेनामी गुलामी में शामिल होने का? मैं खामोश हूँ, रहूँ, बोलूं, बिख्लाऊं, खुलूं, खोलूं, कहूँ कहलाऊं, मैं अपने साथ हूँ, या एक होकर अकेली? पहेली?