कितने डर हैं, सामने,
उम्मीदें,
कितनी लावारिस
कितने यकीन दिल के,
मन्नतों से हैं खारिज
मेरे रास्तों से क्यों मेरे अपने अजनबी हैं,
क्यों नहीं शामिल, मेरे सफर में,
खुद से क्या सवाल हों,
कल ना कुछ मलाल हो,
वो कैसे करीबी हैं, जो दूर करते हैं?
वो कैसी मोहब्बत
जो इज़ाज़त ही नहीं देती?
मैं अपने साथ हूँ,
या दूसरों की बात?
क्या समझे है कोई मेरे सच?
ये सफर आज़ादी का है?
या दूसरों की बेनामी गुलामी में शामिल होने का?
मैं खामोश हूँ, रहूँ, बोलूं, बिख्लाऊं,
खुलूं, खोलूं, कहूँ कहलाऊं,
मैं अपने साथ हूँ,
या एक होकर अकेली?
पहेली?
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