कैसे आसमाँ में इतने रंग बनते हैं? पेड़, पंछी, हवा मिल के बुनते हैं!! कमी नहीं किसी को किसी की! अपनी मर्ज़ी से ये साथ चुनते हैं! कुछ नहीं आसमाँ बस एक खालीपन है, है किसी की नज़र क्या कम, क्या गम है!! अपनी पहुँच, अपने आसमाँ, अपनी ज़मीं! सफर मुसलसल कोई तय जगह तो नहीं!! आसमान बात करने तैयार है! क्या आपकी डोर आपके हाथ है? चारों तरफ फैला है फिर भी अकेला है, आसमाँ से कैसे कहें ये दुनिया मेला है? आसमान को अपने सच मालूम हैं, "कुछ नहीं है"! ये ही वज़ह है! आसमान में कुछ कमी नहीं है!! सूरज भी, चांद भी ओ सारा जहान, सब कुछ ही है बस एक आसमान! और ये डर के आसमान गिर जाएगा? जमीं पर आपको कब यकीं आएगा??
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।