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अक्तूबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सियासत तमाम!

सियासत जुल्म है, हुक्मरान कातिल, शिक़ायत करें, किससे, क्या हांसिल! बड़ी कारोबारी सरकार है, मज़हब इसका व्यापार है। वो सरकार जिसका मज़हबी सरोकार है, सोचा जाए तो मानसिक रूप से बीमार है! सरकार धर्म की ठेकेदार बनी है, छाँट-बांट -काट की नीति चुनी है! आज कल ताज़ा खबर है, नफरत सियासत का घर है! इंसानियत की क्यों सरहदें हैं? हैवानियत क्यों सरकार हुई है?  मौत सरकार हो गयी है, बड़ा कारोबार हो गई है!!  इंसाफ़ कटघरे में खड़ा है, सियासत चिकना घड़ा है! गायगर्दी कीजिए, सरकारी काम है, गुनाहगारों को अब रामनाम है!!

फिर फिर करवा!

कमजोर मरद डरपोक मर्द करवाचौथ आखिर क्यों कर?? औरत भूखी मरद अमर, तंग सोच, बेशर्म बेदर्द! मर्द का डर, औरत किधर? मर्ज़ी किसकी, क्या जोर-जबर! ! लम्बी उम्र की दुआ, औरत एक जुआँ, बिछा रखा है बिसात पर, तो क्या हुआ? लंबी उम्र की भूख है हवस है, परंपरा है कहाँ कोई बहस है? औरत की औसत उम्र मर्द से कम है, मर्द के लिए व्रत रखती है क्या दम है? ये कैसी मरदानगी की करवा (ते) चौथ है, पल्लू में छिपते हैं डर है कहीं मौत है? परंपरा की दादागिरी और समाज की गुंडागर्दी, और ऊपर से ये ताना के जैसी तुम्हारी मर्ज़ी! तरह तरह से औरत की मौत है, उनमें से एक नाम करवाचौथ है! मर्द जंज़ीर है, औरत शरीर है, परंपरा सारी मर्द की शमशीर है! घर में बेटी, बहू, मां, पत्नी, बहन, घर के बाहर, शराफ़त पर बैन? क्या सिर्फ लंबी उम्र चाहिए? या पैर औरत का सर चाहिए?

आपके आईने!

और आप खुद को पहचान गए हैं, या दुनिया का कहा सुना मान गए हैं? आप क्यों दुनिया के हज़म हुए जाते हैं? अपने मसालों से आप क्यों बाज़ आते हैं? हर एक चीज़ आईना है, आप क्यों खोए हुए हैं? रोज नए सच सामने आते हैं, आप आईने देखने कहाँ जाते हैं? आईने आप को नापते नहीं! ऊँचनीच आपकी नज़र में है!! सवाल ही रास्ता हैं, क्या आप चल रहे हैं? आप कौन हैं गर ये सवाल है,आजकल?! पूछिए उनसे जो फिलहाल मिल रहे हैं!! डर रहे हैं? क्यों संभल रहे हैं? दुनिया चाल! आप चल रहे हैं? वही मुमकिन जो तय किया है, आप क्यों उम्मीद बदल रहे हैं?

सुबह समझिए!!

सुबह झांकती है हर कोने से, देखिए!  ज़रा उचक अपने बिछौने से, साथ चलने को तैयार, रोशन,  होशयार! अकेले कोई भी नहीं है, अगर आप सिर्फ़ "मैं" नहीं हैं, केवल एक इंसान? इतनी सिमटी पहचान? ढूंढते फिरिए फिर, भीड़ अपनी पहचान, कपड़ों की डिज़ाइन, चेहरे का नक्शा, फेयर व लवली, नॉट सो ईजिली!! जमीन आसमान, जंगल जीव खुला दिल तहज़ीब, फूल पत्ते, मधुमक्खी के छत्ते, गुम होते जानवर, काली होती हवा ? पूछिए खुद से! आप कौन हैं? उस दौड़ की भीड़! जिसकी खो गई रीढ़? या उस दुनिया के अजूबे, जिसमें लाख जीव जंतु दूजे? अकेले अपने लिए, अपने मैं, अपने कुनबे, अपने जात, या ये जगत आप की जात, सब सबके लिए? आप प्राणी हैं या महज़ एक इंसान? अकेले हैं? या सुबह के साथ?

मानवता की जय!

, आज एक सुबह देखी, धुंधली, सिकुड़ी, सिमटी, इंसान की सूरज पर विजय देखी, अहंकार की जय देखी, ताकत की शय देखी!! सीमेंट के दैत्याकार पिंजडे में कैद सुबह, मुट्ठी में बंद, चंद दरख्तों में सांस लेती, इंसान के पैरों में, अपनी AC रातों से रात गई टीवी की बातों से, और एक लड़ाई की तैयारी, अपनों से, अपनों के लिए, बाज़ार से ख़रीदे सपनों के लिये! और उस सब से पहले, चंद लम्हों के लिए सुबह का जायका लेने, 2-मिनिट प्राणायाम, हँसने का व्यायाम, देवी को प्रणाम, दिन भर छुरी चलाने, शुरुआत राम राम! किसको फर्क पड़ता है, अपना मतलब निकल गया, बाकी सुबह भाड़ में जाए चाहे धुआं खाए, चाहे धूल उसकी औकात क्या, कल तो फिर आएगी, हमारी गुलाम जो है! हमने असीमित जंगल जमीन किए हैं, इरादे आसमान, हर किसी पर जीत यही है हमारी सभ्यता की पहचान! हम अजेय हैं, हमने स्वर्ग बनाए हैं, वो भी वातानकुलित! नरक भी हमारे तमाम हैं, हम ही तो भगवान हैं!! मानवता की जय!!