सुबह झांकती है हर कोने से,
देखिए!
ज़रा उचक अपने बिछौने से,
साथ चलने को तैयार,
रोशन, होशयार!
देखिए!
ज़रा उचक अपने बिछौने से,
साथ चलने को तैयार,
रोशन, होशयार!
अकेले कोई भी नहीं है,
अगर आप सिर्फ़ "मैं" नहीं हैं,
केवल एक इंसान?
इतनी सिमटी पहचान?
ढूंढते फिरिए फिर,
भीड़ अपनी पहचान,
कपड़ों की डिज़ाइन,
चेहरे का नक्शा,
फेयर व लवली,
नॉट सो ईजिली!!
आप कौन हैं?
उस दौड़ की भीड़!
जिसकी खो गई रीढ़?
या उस दुनिया के अजूबे,
जिसमें लाख जीव जंतु दूजे?
अकेले अपने लिए, अपने मैं, अपने कुनबे, अपने जात,
या ये जगत आप की जात, सब सबके लिए?
आप प्राणी हैं या महज़ एक इंसान?
अकेले हैं?
या सुबह के साथ?
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