संजीव भट्ट को जेल नहीं हुई, हम सबको सज़ा मिली है, नज़रबंद, मतबंद हैं अब हम सब, खेलिए अपने खेल, छोटे मोटे,. अपनी गली का शेर बनिए, पर ख़बरदार गब्बरसिंह से पंगा मत लेना! लेना है तो दंगा लीजिए, कैश या उधार, सब स्वीकार, चुनिए किसी अल्पमत को, नहीं पसंद आते सच को लगाइए तोहमत, जपिए राम नाम कीजिए काम तमाम, चिंता की बात नहीं, देर और अंधेर, अब सेर से सवा सेर! कितने अच्छे दिन हैं, चिंता की बात नहीं, कमजोर की अब जात नहीं, और मज़हब की औकात नहीं, विरोध करना मना है, सहमत होइए, शाश्वत सच सब एक हैं, जो भी अंतर है, वो माया है झूठी काया है, यहां से लेकर क्या जाएंगे, चार दिन की बात है, फिर खाली हाथ हैं मरने दीजिए तबरेज़ को, पायल को, अख़लाक़ को, रोहित को, जुनैद को सच को, संविधान को, राम नाम सत्य है, बस यही एक मत है!