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जुलाई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

निर्माण गीत a Mary Oliver poem

गरम मौसम कि एक सुबह,  बैठ, एक टीले के नीचे एक जगह,  मैं सोच रही था ‘ईश्वर’! समय सदुपयोग के लिए  एक अच्छी वज़ह!! नज़र आया एक मात्र कीड़ा,  टीले की रेत को सरकाती इधर-उधर, लुढक-पुढक,  भरपूर जोश,  विनम्र सोच! उम्मीद है ये हरदम ऐसा ही रहेगी, (यही दमखम) हम में से हर एक  अपने रास्ते चलते इस जग को रचते!

मोहब्बत के काम!

मोहब्बत क्यों ये मुश्किल काम है? पहलू में उनके सुकूँ, आराम है! क्यों दुनिया में आशिकी बदनाम है? उनकी शिकायत, ये जरूरी काम है! फिक्र है मेरी ये उनका काम है, ये समझ लेना सफर का नाम है! आपस में दोनों खासे बदनाम हैं, आ गया गुस्सा तो खासे आम है! सब शिकायत है मेरी ख़ामोशी से चुप हैं हम और खासे बदनाम हैं! नज़र जब भी नज़रिया बन जाए, समझ लीजे किसी का काम तमाम है! ज़िंदगी जी रही है ख़ूब दोनों को, हम हैं साकी और वो जाम है! मोहब्बत गहरी पहचान है, सुबह मेरी ओ उनकी शाम है! एक-दूजे को मुश्किल-ए-आसान हैं! चैन भी हैं ओ कभी चैन-ओ-हराम हैं!

बचे बच्चे!

बच्चे मन के सच्चे, 'बड़े' कान के कच्चे, मज़हब ढोंग दिखावा, भारत भाग विधाता!   कहने की बात की बच्चों में भगवान है, सच्चाई ये की आधे-अधूरे इंसान हैं!   वो तोड़ते पत्थर धूल से लथपथ कर, आप तालियां बजाइए चाँद की यात्रा पर! बच्चे हमारा भविष्य हैं, कहावत है, लाखों भूखे-नंगे है किसकी ज़हालत है!?    कचरे में चुनते हैं धड़कन ज़िंदा बच्चे, मुर्दा बचपन! बच्चे सब को प्यारे हैं, फिर क्यों? अनगिनत बेचारे हैं!? बच्चों के लिए सबको बड़ा प्यार है, इस प्यार के लाखों बड़े गुनहगार हैं! 'अपने ही'बच्चों को सब ज़ख्म देते हैं! फिर भी हम अपनों की कसम लेते हैं? अगर एक भी बच्चा भूखा है, तो देशभक्ति का इरादा झूठा है!

तू जो कहे हाँ तो हाँ!

संजीव भट्ट को जेल नहीं हुई, हम सबको सज़ा मिली है, नज़रबंद, मतबंद हैं अब हम सब, खेलिए अपने खेल, छोटे मोटे,. अपनी गली का शेर बनिए, पर ख़बरदार गब्बरसिंह से पंगा मत लेना! लेना है तो दंगा लीजिए, कैश या उधार, सब स्वीकार, चुनिए किसी अल्पमत को, नहीं पसंद आते सच को लगाइए तोहमत, जपिए राम नाम कीजिए काम तमाम, चिंता की बात नहीं, देर और अंधेर, अब सेर से सवा सेर! कितने अच्छे दिन हैं, चिंता की बात नहीं, कमजोर की अब जात नहीं, और मज़हब की औकात नहीं, विरोध करना मना है, सहमत होइए, शाश्वत सच सब एक हैं, जो भी अंतर है, वो माया है झूठी काया है, यहां से लेकर क्या जाएंगे, चार दिन की बात है, फिर खाली हाथ हैं मरने दीजिए तबरेज़ को, पायल को, अख़लाक़ को, रोहित को, जुनैद को सच को, संविधान को, राम नाम सत्य है, बस यही एक मत है!

मैं प्रिविलेज!

  मैं धर्म और जात हूँ, सरकारी हालात हूँ, मेहनत का मज़ाक हूँ, मक्खन मलाई औकात हूँ! मुझे क्या फर्क पड़ेगा, तबरेज़ की रामहत्या से पायल के जातमत्या से मैं मिडिल क्लास हूँ!! मैं शहर हूँ, अपार्टमेंट घर हूँ, आरओ से तर हूँ, बस्ती से बेख़बर हूँ! स्लमबाई काम करती है, माफ़िया टैंकर पानी भरती है, मैं क्यों अपना हाथ लगाऊं, कचरा गीला सूखा बनाऊं? बस ट्रेन में ए.सी. हूँ, बाज़ार में निवेशी हूँ, मर्ज़ी जो परिवेशी हूँ, क्रेडिट कार्ड का ऐशी हूँ! मर्द मर्ज़ी मूत्र हूँ, पितृसत्ता पुर्त हूँ बाप, भाई, पति ताकत का सूत्र हूँ! जात में "नीच" नहीं, औकात में बीच हूँ, मर्द बीज हूँ त्योहार तीज हूँ! मैं हिंदी भाषी हूँ, मतलब खासमख़ासी हूँ, बहुमत की बदमाशी हूँ, जन्मसिद्ध देशवासी हूँ!

जमीनी बातें!

जब जमीं मकां होती है तो जश्न होता है मकान के जमीं होने पर क्यों अश्क होता है मेरे पैर ज़मीन हैं, कितने नुक्ताचीन हैं, खाते हैं दर ठोकरें फ़िर भी यकीन है! खासे आसमान हैं, रंगों में कितनी जान है! उड़ रहे हैं वो जिनको हांसिल आसान है! जमीं को भी भरोसा है, पैर भी यकीन हैं, आज़ाद है अधूरे दोनो, और पूरे अधीन हैं! मीठे हैं कहीं पर हम और कहीं नमकीन हैं, ज़मीन से हैं सच या सच से यूँ ज़मीन है? उड़ गए वो जिनको परों को कम यकीन है! कैसे समझें पैरों को ज़ंजीर नहीं जमीन है! ज़मीन जड़ है, दीवार नहीं ओ आसमाँ छत, फिर भी अटके हैं सब नाप मीटर,फीट,गज!!