गरम मौसम कि एक सुबह, बैठ, एक टीले के नीचे एक जगह, मैं सोच रही था ‘ईश्वर’! समय सदुपयोग के लिए एक अच्छी वज़ह!! नज़र आया एक मात्र कीड़ा, टीले की रेत को सरकाती इधर-उधर, लुढक-पुढक, भरपूर जोश, विनम्र सोच! उम्मीद है ये हरदम ऐसा ही रहेगी, (यही दमखम) हम में से हर एक अपने रास्ते चलते इस जग को रचते!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।