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मैं प्रिविलेज!

 मैं धर्म और जात हूँ,
सरकारी हालात हूँ,
मेहनत का मज़ाक हूँ,
मक्खन मलाई औकात हूँ!

मुझे क्या फर्क पड़ेगा,
तबरेज़ की रामहत्या से
पायल के जातमत्या से
मैं मिडिल क्लास हूँ!!

मैं शहर हूँ,
अपार्टमेंट घर हूँ,
आरओ से तर हूँ,
बस्ती से बेख़बर हूँ!

स्लमबाई काम करती है,
माफ़िया टैंकर पानी भरती है,
मैं क्यों अपना हाथ लगाऊं,
कचरा गीला सूखा बनाऊं?

बस ट्रेन में ए.सी. हूँ,
बाज़ार में निवेशी हूँ,
मर्ज़ी जो परिवेशी हूँ,
क्रेडिट कार्ड का ऐशी हूँ!

मर्द मर्ज़ी मूत्र हूँ,
पितृसत्ता पुर्त हूँ
बाप, भाई, पति
ताकत का सूत्र हूँ!

जात में "नीच" नहीं,
औकात में बीच हूँ,
मर्द बीज हूँ
त्योहार तीज हूँ!

मैं हिंदी भाषी हूँ,
मतलब खासमख़ासी हूँ,
बहुमत की बदमाशी हूँ,
जन्मसिद्ध देशवासी हूँ!

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साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।