मैं भारत हूं,
मैं भी,
टुकड़े टुकड़े,
रोज टूटता,
बिखरता हूं,
अपनी नजरों में गिरता हूं,
कभी रोहित के गले का फंदा,
कभी कठुआ का दरिंदा,
कभी तबरेज़ की लाश हूं,
कभी बदायूं का काश हूं,
मीलों चलता,
मैं ख़ामोश हूं, और मैं भी,
शब्दों की धार हूं,
पूरा ही हथियार हूं,
फिर भी बेकार हूं,
पूरा का पूरा
एक टुकड़ा मैं भी,
भारत, टूटा हुआ!
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