सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नाकाफियत!

क्यों उन रास्तों से गुजरते हैं

जो अपनी नजर में

चढ़ते उतरते हैं?



कहां पहुंचेंगे?

सही जा रहे हैं क्या?

भटक गए तो?

अटक गए अगर?



साथ मिलेगा क्या?

कैसे होंगे लोग?

उस डगर, गांव, शहर?

अगर–मगर, अगर–मगर, अगर–मगर



दम फूल गई,

क्या भूल हुई?

हार गए क्या?

कमजोर हैं?



नहीं जाएंगे ही!

पहुंच कर दम लेंगे!

वो लोग कर लिए तो!

हम क्या कम हैं?



हर मंजिल सांतवा आसमान है,

कामयाबी, 

अगली लड़ाई के लिए,

हौंसला–कमाई,

कहीं पहुंच जाना जैसे

जंग की फतह है!

ये सोच कितनी सतह है!



आख़िर किसका जोर है?

जहन में, जिस्म में,

कितना शोर है?



देखो जरा आस–पास, 

पेड़, पानी, जमीन, जंगल

खड़े हैं सो खड़े हैं,

पड़े हैं सो पड़े हैं

बहते बहे हैं,

चलते चले हैं,

फिर भी पल–पल बदल रहे हैं,

हर लम्हा संभल रहे हैं,

खुद ही रास्ता हैं, और

अपना ही मकाम हैं,

कुछ साबित नहीं करना,

न खुद को न दुनिया को!



पूरे नहीं है, 

न मुकम्मल हैं,

पर कुछ कम भी नहीं है,

जो हैं बस वही हैं!

इसमें कहां कुछ गलत–सही है?


नाकाफियत – एक नकारात्मक एहसास, शिक्षा और संस्कार द्वारा पैदा की गई बीमारी जो लोगों के जहन में ये सोच डालती है कि आपमें कोई कमी है और आप हमेशा बड़े और अपने से ताकतवर लोगों की तारीफ़ के लिए सही–गलत में फर्क करना भूल जाते हैं!

@Chirping Ochard, Mukteshwar 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी ...

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।