सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है,

बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा!



और ये आसान काम नहीं है, 

जो हिसाब दिख रहा है 

वो दुनिया की वही(खाता) है!

ऐसा नहीं करते 

वैसा नहीं करते

लड़की हो,

अकेली हो,

पर होना नहीं चाहिए,

बेटी बनो, बहन, बीबी और मां,

इसके अलावा और कुछ कहां?

रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने

और झेलने, 

यही तो आदर्श है,

मर्दानगी का यही फलसफा, 

यही विमर्श है!



अपनी सोचना खुदगर्जी है,

सावधान! पूछो सवाल

इस सोच का कौन दर्जी है?

आज़ाद वो 

जिसकी सोच मर्ज़ी है!.

और कोई लड़की 

अपनी मर्जी हो 

ये तो खतरा है,

ऐसी आजादी पर पहरा

चौतरफा है,

बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया, 

कलंकिनी, कुलक्षिणी, 

और अगर शरीफ़ है तो

"सिर्फ अपना सोचती है"

ये दुनिया है!

जिसमें लड़की

अपनी जगह खोजती है!






होशियार!

अपने से जो लड़ाई है,

वो इस दुनिया की बनाई है,

वो सोच, वो आदत, 

एहसास–ए–कमतरी,

शक सारे, 

गलत–सही में क्यों

सारी नपाई है?



सारी गुनाहगिरी,

इस दुनिया की बनाई,

बताई है!


मत लड़िए,

बस हर दिन, हर लम्हा

अपना साथ दीजिए.


(पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए हर दिन के महिला संघर्ष को समर्पित)

(Picture, painting courtesy Archana Magar)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हमदिली की कश्मकश!

नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।