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गाज़ा की आवाज़!

 Translation of poem by Ni'ma Hasan from Rafah, Gaza, Palestine

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जब तुम मुझे मेरे डर का पूछते हो,

मैं बात करतीं हूं उस कॉफी वाले के मौत की,

 मेरी स्कर्ट की

जो एक टेंट की छत बन गई!

मेरी बिल्ली की,

जो तबाह शहर में छूट गई और अब उसकी "म्याऊं"

मेरे सर में गूंजती है!

मुझे चाहिए एक बड़ा बादल जो बरस न पाए,

और एक हवाईजहाज जो टॉफी बरसाए,

और रंगीली दीवारें 

जहां पर मैं एक बच्चे का चित्र बना सकूं,

हाथ फैलाए हंसे-खिलखिलाए

ये मेरे टेंट के सपने हैं,

और मैं प्यार करती हूं तुमसे,

और मुझमें है हिम्मत, इतनी,

उन इमारतों पर चढ़ने की जो अब नहीं रहीं,,

और अपने सपनों में तुम्हारी आगोश आने की,

मैं ये कबूल सकती हूं, अब मैं बेहतर हूं,

फिर पूछिए मुझसे मेरे सपनों की बात

फिर पूछिए मुझसे मेरे डर की बात!

–नी‘मा हसन, रफ़ा, गाज़ा से विस्थापित 


नीचे लिखी रचना का अनुवाद

When you ask me about my fear

I talk about the death of the coffee vendor,

And my skirt 

That became the roof of a tent

I talk about my cat

That was left in the gutted city and now meows

That repeat in my head 

I want a large cloud that can't rain

And an aeroplane that throws candy

And colored walls where I can draw a child

With open arm smiling

These are the dreams of my tents

And I love you and have enough courage 

To scale buildings that no longer exist

And in my dreams leap,into your arms

So I can confess that now I am well

Plesse ask me about my dream again

Plesse ask me about my fear again

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