10 साल हुऐ पाकिस्तान गए थे,
बनने (थोडा और) इंसान गए थे!
बन कर मेहमान गए थे,
एक मुश्किल (चार लोग जो बोलते हैं)
को आसान गए थे,
शक सारे खामोश हो गए!
गले मिले आगोश हो गए,
जज्बे सब के जोश हो गए!
दिन, महीना और साल नहीं है,
ज़हर का बाज़ार बना है,
उसमें कोई इंकलाब नहीं है!
हम वही, दोस्त वही हैं,
दोस्ती ये खामोश नहीं है,
अफ़सोस बहुत है,
मिल नहीं पाते,
उम्मीदों को यूं सिल नहीं पाते!
तैयारी अब भी वही है,
इंतजार की प्यास वही है,
आस वही है, रास वही है,
कोशिश का आकाश वही है!
ये दुनिया रास्ते भटक गई है,
नाप तोल में अटक गई है,
संवेदनाएं मज़हब बन गई,
इंसानियत फंदा लटक गई है!!
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