सुरज़
की रोशनी से चमकती,
और
उसी से पुरस्कृत ,
पास
ही में वो बगीचा,
रंगों से सराबोर
सारे रंग जिंदगी के
रंगों से सराबोर
सारे रंग जिंदगी के
और
सब रंग उतने ही उद्धंड़
और
घास इतनी घनघोर हरित कि
आँख
और दिल दोनो भर आयें
और
उन के पार पहाड़
एकदम
तैयार
ताज़गी
से चमकते हुए
चलने
को तैयार
कितऩी
मनमोहक सुबह
हर
चीज़ सुंदरता से सृजित
संकरे
पुल के उपर बहती धारा के बीच
जंगल
के गलियारे में
चंचलता
जो
उनकी परछाई को भी रोशनी दे रही
थी
वो
सब साधारण पेड़ थे,पर
अपनी
हरियाली और ताज़गी से उऩ्होनें
उन
सब पेड़ों को पीछे छोड़ दिया था,
जो
नीले
आकाश को चुनौती देने में व्यस्त
थे!(जे.कृष्णमूर्ती की चहलकदमी से निकली अभिव्यक्ति को पकड़ने की कोशिश)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें