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रामलछन

राम नाम के काम सब, राम नाम के लच्छन,
इज्ज़त से सब खेल रहे राम जपन के बंदर,

राम जपन के बंदर सारे बने दुषासन,
लाल किले पर चढ़के ये देते भाषण,

भाषण के बड़े बीर लगाबें झूठे नारे,
संविधान पर बैठ जोर से राम जपारे,

जप के ज़ोर से राम राम मस्ज़िद दिए गिराये,
नफ़रत के सौदागर अब देस अपना चलायें,

देस अपना चलायें राम के सारे जादे,
बेच दिए पूरी देसवासी अक्ल के आधे,

अक्ल के आधे राम को सारे अंधे,
मज़हब के चल रहे तमाम धंधे अंधे,


धंधे-अंधे चला रहे माया  का जादू,
चला रहे सत्ता अंबानी-अडानी के बाबू

अंबडानी के बाबू सब देस को सेब बनायें,
बेचेंगे ये मुलक कोई जो जेब गरमाए,

गरम जेब के लालच में देसभगत सब आये
लालच की भक्ती में सारे राम-लुभाये!

रामलुभाये आसा, देव, और श्री के संकर,
फूल चढ़ाये बहुत कोई अब फैंको कंकर!

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साफ बात!

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मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

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