सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जय जय श्री शंकर !

यमुना का किनारा,
मजबूर बेचारा
जहाँ न पहुँचे कवि,
इतनी बदबूदार छवि,
वहाँ पहुँचे शंकर,
काँटा लगे न कंकर,
इसलिये जेसीबी चलवा दिये
धरा को धमका के
समतल बना दिये
प्याला धरम का पिया,
थोड़ा सरकार को दिया,
थोड़ा जज ने भी चखा,
  

अल्लाह के नाम पे दे दे बाबा
जो दे उसका भला,
वरना किसान जैसे फ़ंदे को गला,
मैं गिर जाउंगा, उठ न पाउंगा
जो तूने मुझे थाम न लिया,
ओ सौ सेना का गरेबाँ पकड़ा
और उन्हीं की पीठ पे चल दिया,

एक के दो दो के चार मुझको क्यों लगते हैं,
ऐसा ही होता है जब दो श्री मिलते हैं,
उपर राम नीचे संघी घमासान,
हो सौ रबड़ी, जलेबी घी की,
 

ओ संघी भैया, आओ आओ,
ओ मेरी उमा, बड़े जतना से
गयी भैंस पानी में रे

कंधे पे, सर रख के, तुम मुझको खोने दो,
अपनी है, सरकारें, जो चाहे होने दो,
मीड़िया वालों को मुस्करा के कह दो
तुम कितने नादान,
कितने कच्चे, तुम्हारे कान,
हो सौ खबरी,
 

दो दिन पहले, एनजीटी का, माल-या खुदा,
कहाँ से लायेंगे,
छोड़ो जी, ये सब तो, सरकार से ही दिलवाएंगे
कुछ भी हो लेकिन मज़ा आ गया
नरिंदर अरविंदर
सब अपने जाल,
राम के नाम
शंकर का कमाल!
अब देखिये जिंदगी की कला का धमाल
(जहाँ न पहुंचे रवि वहाँ जाये कवि  - ज़ाहिर है रोशनी के नीचे अंधेरे का साम्राज्य है, वैसे दो श्री के शंकर जि को फ़िल्मी गानों पर झूमने का बड़ा शौक है तो उन्ही के नाम के एक गाने को भ्रष्टाचार के सुर में काने का ये एक मामूली प्रयास है) 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी ...

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

एलिमेंट्स

  कोई लड़ाई नहीं है, हवा पानी पहाड़ में, जमीन आसमान में, आग और पानी में? पानी बुझा देता है, आग उड़ा देती है आपको लगता है ये लड़ाई है? खासी तंग सोच पाई है! यही सोच तहज़ीब बनी है, तरक्की का बीज बनी है, पीछे छोड़ देना, आगे जाने की शर्त है, ये कैसी यही कवायद है? आखिर सीखा क्या हमने, कुदरत से? पानी और आग की दोस्ती? जब साथ आते हैं,  हवा हो जाते हैं! हवा और पानी  जमीन की सवारी हैं, सदियों से ये सफर जारी है! कोई किसी से कम नहीं, न कोई किसी पर भारी! हर कोई वजह है,  जगह नहीं, पानी, हवा, आग, जमीन, कायनात के कलाकार हैं, कई प्रकार है, तमाम आकार हैं, और जहां जरूरी हो, शून्य, सिफर होने तैयार हैं! बड़ा छोटा, कम ज्यादा, आगे पीछे, ऊपर नीचे इस द्वंद, इस जंग में फंसे आप कब इन कलाकार से सीखेंगे??