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और सफ़र अपने!

बदलते रस्तों के सामान, साथ को थोड़ी सी शमशान, 
चलना काम है अपना, किसको परवा है क्या अंजाम!

"एक सफ़र कई रास्ते, मुसाफ़िर होने के वास्ते,
कितने मकाम ठाढें थे, सो कौन हुए हम आस्ते!"



"सफ़र सबका है, और सब ही शुक्रगुज़ार भी,
कहने को रुके हैं, मुसाफ़िर हम, तैयार भी!"

"दिल को मिले दिलवाले, लम्हों का हलवा बना ले,
जायके जिंदगी के सफ़र में, दावत कबूल हो!"

"तस्वीर है या कोई तासीर है, मिजाज़ है या मर्ज़ी,
तमाम तज़ुर्बे है इस सफ़र के और कलम दर्ज़ी!"


 "तमाम सफ़र है रास्तों में गर आपको फ़ुर्सत है,
रोज़ाना से दूर चलिये बड़ी हसीन फ़ुर्कत है!"



न दूर जाने की बात है न नज़दीकियों से वास्ता, 
प्यासी है रूह अपनी इसको नहीं कोई नाश्ता!


"युँ तो आसमान भी काफ़ी नहीं,
जो जमीं है वो भी कुछ कम नहीं!"


सफ़र है पर सब चलते नज़र नहीं आते,
कि अपनी ही तस्वीर में कैद हुये जाते हैं

आप हैं हम हैं और वो कई इतफ़ाक, 
चलने को पूरे हैं और रुकने को अधुरे!

सफ़र अपने समय के मोहताज़ नहीं,
जिंदगी तज़ुर्बा है सर का ताज़ नहीं!



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