मुझे मोक्ष का मोह नहीं
न ही सत्य की लालसा है
अपने अहंकार से कोई भय नहीं
न मुझे मंदिरों की कैद पसंद है
न ही अपनी बुद्धि का प्रभुत्व
मैं अपने अधूरेपन का उपासक हूँ
मैं अपनी गलतिओं से नहीं सीखता
न ही अपनी भूलों से पछताता हूँ
न मुझे इतिहास की गुलामी पसंद है
और न ही भविष्य पर सियासत
मैं लम्हों का हिसाब नहीं रखता
उम्र के साथ घटना बढना मेरा सामर्थ नहीं
मैं अपनी बातों का साक्षी नहीं
आज मैं हूँ, कल मैं भी (may be) नहीं
मैं अपने अधूरेपन का उपासक हूँ
मैं प्रारंभ ही नहीं हुआ अंततः क्या?
अनंत से प्यार है अंत से नहीं डरता
अपने से प्यार नहीं है पर इंकार भी नहीं
चल रहा हूँ पर पहुँचने के लिये नहीं
ये अधूरेपन का सफर है
अधूरा हूँ
नदी बन बहता हूँ
कवि हूँ ?
इसलिए कहता हूँ
मैं अधूरेपन का उपासक हूँ.
Adurepan mein poorapan...
जवाब देंहटाएंRastoon mein mazil ka guman...
Ek haath mein samay ki dhar...
Doosra khojta sambhavana anant..