ताक़त नशा है,
नशा लत होता है,
लत मजबूरी बनती है,
सच से,
ईमान से दूरी बनती है,
अपनी सोच,
जरूरत बनती है,
बस फिर क्या,
साम दाम दंड भेद,
कहीं न कहीं,
दायरे बस अलग अलग,
कोई दुनिया का है,
कोई देश का,
कोई धर्म का, जात का,
कोई मर्द बात का
कोई जमीन का,
कोई कुदरत-ब्रम्हांड का!
किस से?
किस वजह से?
अपने लिए, अपनों के लिए
खोए सपनों के लिए?
अपनी हदों से लड़ाई है
या सरहद गंवाई है?
यकीन से जंग है?
या बंद आँख देशभक्त है?
उनका सोचें,
जो भूख से लड़ते हैं?
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