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पैरों तले ज़मीन!


ताक़त नशा है, 
नशा लत होता है, 
लत मजबूरी बनती है, 
सच से, 
ईमान से दूरी बनती है, 
अपनी सोच, 
जरूरत बनती है, 
बस फिर क्या, 
साम दाम दंड भेद, 
फिर क्या खेद?

सब शरीफ़ हैं, 
कहीं न कहीं, 
दायरे बस अलग अलग, 
कोई दुनिया का है, 
कोई देश का, 
कोई धर्म का, जात का, 
कोई मर्द बात का 
कोई जमीन का, 
कोई कुदरत-ब्रम्हांड का! 
आप कितनों के शरीफ हैं?


सब की लड़ाई है, 
किस से? 
किस वजह से? 
अपने लिए, अपनों के लिए 
खोए सपनों के लिए? 
अपनी हदों से लड़ाई है 
या सरहद गंवाई है? 
यकीन से जंग है? 
या बंद आँख देशभक्त है? 
उनका सोचें, 
जो भूख से लड़ते हैं?

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साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

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