हम काफ़िर हैं झूठे यकीनों के,
दीवारों में चुनने के काबिल हैं क्या?
अकीदत और इबादत के गैर हैं हम,
आपकी दुआओं से खैर हैं क्या?
सजदा करें इतनी अना नहीं हममें,
ख़ाक से पूछिए ख़ाकसार है क्या?
अपने गुनाहों को गंगा नहीं करते,
जो एहसास न हो वो वजन है क्या?
"जय श्री" जोश में कत्ल कर दें कोई
आप ऐसे कोई अवतार हैं क्या?
भक्त भीड़ बन गए हैं तमाशों की,
सारे अकेलों की कहीं भीड़ है क्या?
हम मुसाफिर हैं तलाश तख़ल्लुस है,
ज़िंदगी मज़हब के वास्ते है क्या?
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