सुबह के फूल, शाम की धुल
चमचमाती गाड़ियां नयी जैसी,
बहुत सारे पानी की ऐसी की तैसी,
गेंदे से सुसज्जित, पूजा युक्त गाडियाँ
भक्तों के हाथों, सिग्नल तोडती हुई,
"भगवान मालिक है"
अपनी ही दुनिया है, उसमे 'नो एंट्री' कैसी?
कहते है आज, बुरे पर अच्छे की जीत है!
'आज' पर इतना संगीन इलज़ाम
तिलमिलाते 'आज' को दिलासा,
यही रीत है,
अब राम की लीला होगी,
सीता की कौन सोचे, "एक चादर मैली सी"
एक चाय की दुकान पर,
टोपी लगाये, कूच हाल्फ़-पैंट टोपी लगाये,
और चुस्की लेते,
गाँधी(वाद) को तो पहले ही निपटा दिया
अब कौन सा सच बाकी है,
गुजरात गवाह है,
आज सच बहुत खाकी है,
टक-टक की लय पर थिरकते पाँव,
चमकती रोशिनी, दुनिया रोशन,
सबको एहसास है,
अँधेरा है चिराग तले, वो जगह बकवास है
और सुबह उठ कर देखता हूँ
सड़कों पर कचरे का ढेर है
(ईद के दूसरे दिन भी हैदराबाद में यही नज़ारा था,
हम सब एक हैं!)
सूअर हँस हँस कर कह रहे है
शुक्र है मालिक! आज देर कहाँ,
सिर्फ अंधेर है,
दशहरा-दिवाली वगैरा आप को मुबारक हो!
(नवरात्री के शोर, दशहरे की सड़क, और अगले दिन सड़कों के नज़रों से प्रोत्साहित होकर)
बहुत सुन्दर रचना ..........sachchhai bakhaan karti aapki post
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