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नया साल, फ़िर वही मलाल!



जो पूछते हैं हमसे, साल कैसा था,
सोचते हैं हम, ये सवाल कैसा था?
उस गली में हो रहा कत्लेआम कैसा था?
जो सुने नहीं उन चीखों का अंजाम कैसा था?
जो लुट गए उनका सामान कैसा था?
जो मिट गए उनका राम कैसा था?
आपकी नफरतों के जो काबिल हैं,
उनका ग़रेबाँ कैसा था?
जो 'मंदिर वहीं बना' उसकी जमीं कैसी थी
ओ आसमान कैसा था?
अपने नहीं हैं जो उनका श्मशान कैसा था?
या कब्रिस्तान कहिए?
गाज़ा के बच्चों का अरमान कैसा था?
अलेप्पो (हलब) में खंडहर कुर्दिस्तान कैसा था!
न हंस पाएं उन बच्चियों का अफगानिस्तान कैसा था?
मत पूछिए मुझसे के साल कैसा था, हाल कैसा है?
जो "आंख ही से न टपका" वो मलाल कैसा है?



 

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साफ बात!

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