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तमाम नफरत....तमाम!


जो नेक है उसका ध्यान करते हैं,
चलिए यूँ नफ़रत तमाम करते हैं!!


दोनों तरफ हैं लोग जो मुस्कराते हैं,

ऐसे भी क्यों जी हलकान करते हैं!



इरादों की जंग है अमनपसंद रहिए!

क्यों कम अपनी मुस्कान करते हैं!!



जो शिकारी बन गए वो भी शिकार हैं,
क्यों उनकी नफरत एहतराम करते हैं!






ज़ख्म, जज़बातों की नज़र न आ जाएं,
और आईने को अपना मकाम करते हैं!


वो तमाम जो बदले की बात करते हैं!

सब अपने घर बैठ कर आराम करते हैं!!



झूठ खबरों ने आँखों को पर्दा किया है,

ग़ुमराह हैं जो, सुना उसे ज्ञान करते हैं!!



मिटा दो, ख़त्म करो, विनाश, ये युद्द्घोष

ये भक्त खुद को क्यों भगवान करते हैं?








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