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मौसम



मौसम ने जैसे अपना घर बना रक्खा है,

तमाम रंगों से हर कोना सजा रक्खा है!


पलक झपकते बदल देती है नज़ारों को,

जरूरत का सारा सामान जमा रक्खा है!




जब जिसको कहे वो उस रंग में ढल जाए,

यूं सब से अपने रिश्तों को बना रक्खा है!


कोई मुकाबला नहीं है खूबसूरत होने का,

इरादों को ही अपना चेहरा बना रक्खा है!





जमीं, पौधे, पानी, पहाड़, बादल, आसमान

एक दूसरे को अपना आईना बना रक्खा है!


इधर बादल आसमान को जमीन ले आते हैं,

जमीं ने पेड़,पहाड़ों को जरिया बना रक्खा है!




जिद्द क्यों हो सबकी अपनी एक जगह है,

बस इंसानों ने ये तमाशा बना रक्खा है!

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