सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कशिश - ए- खुदकशी!






मौत कितनी आसान है, जी करता है

खुदकशी कर लूँ!
जिन्दगी विस्तार है 
दो हाथों में नहीं समाती ,
मौत आसान है, बाँहों में भर लूँ
जिन्दगी कितनी लाचार, कितनी मोहताज़ है


मौत का हर तरफ राज़ है 
मौत जिन्दगी का ताज है 
जिन्दगी मोह है, मौत सन्यास
जिन्दगी अंत है, मौत अनंत 
मौत पर न कोई राशन है, न प्रतिबन्ध 
जिन्दगी है,
न ख़त्म होने वाली लाइन का द्वन्द
जिन्दगी अमीर है, गरीब है
बेमुश्किल खरीद है
मौत आसानी से हासिल 
जिन्दगी के बदले की चीज़ है 
जिन्दगी,
कमज़ोर दिल वालों के बस की बात नहीं 
मौत का कोई मज़हब, कोई जात नहीं


जिन्दगी जड़ है, झगड़ा, फसाद है 
सबको एक जैसी मौत को दाद है 
आखिर कहाँ पहुंचा हमारा उत्थान है 
कि मौत आसान है,
फिर भी,
जिन्दगी के पीछे दौड़ता इंसान है
जो जुल्मी है, पापी है, शैतान है 
उसी का सम्मान है!
सरल, सहज, समान, हर एक को एक ही दाम
मौत आसान है, इमान है 
बिन मांगे मिल जाये वो सामान है
सच कहते है,
घर कि मुर्गी दाल बराबर !
पर क्या करें, जिन्दगी लालच है 
इसलिए इतनी बुरी हालत है 
चल रही है मानवता भेड़ चाल


जिन्दगी कहाँ है?
सब का सवाल
पर मौत कितनी आसान है 
जी करता है ख़ुदकुशी कर लूँ!
(चिंता न करें, ये मैंने कई साल पहले लिखी थी, और बहुत ख़ुशमिज़ाजी मैं, परेशां हो कर नहीं, मौत के लिए सब के डर से चकित हो कर)

टिप्पणियाँ

  1. mrityu ka itna mahimamandan...aisa na ho log anyatha le le :)

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  2. जिन्दगी कहाँ है?
    सब का सवाल
    पर मौत कितनी आसान है
    जी करता है ख़ुदकुशी कर लूँ!


    bahut sundar rachna
    bandhai aap ko is ke liye



    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. मौत इतनी आसान है
    इसिलिये तो उसका डर लगता है,
    झूठमूठ के रिश्ते-नाते,
    और भावनाओं से भरी जिन्दगी,
    अच्छी लगने लगती है... और
    जो कुछ नहीं छुपाती
    उस मौतसे नजरें मिलाने का डर लगता है...

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी ...

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।