रुकी-रुकी सी सुबह ये रात कैसे गुजर गयी ये हवा का रुख है बदला या खुशबू तेरी ठहर गयी जो अभी-अभी थी जली हुई वो आग कैसे बुझ गयी तूने पलकों का परदा गिरा दिया या आँख मेरी खुल गयी वक्त-वक्त की बात है , तू हमेशा मेरे साथ है तु ख्वाब मेरे तोड़ दे तेरी याद मेरे पास है लम्हे-लम्हे का हिसाब क्या , एक उम्र पूरी गुजर गयी अकेली ही थी तू , जो तस्वीर पर नज़र गयी कभी-कभी ये ख्याल भी , रगें दिल की सिहर गयीं , बस जिक्र तेरे नाम का , कुछ बात ऐसे असर गयी जगी-जगी ये रात और सब करवटें ठहर गयीं खामोश मेरे हालात थे और बात सारे शहर गयी ,
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।