सताने लगी है शाम अब कम थोड़ी कम
आती है याद तेरी, अब कम थोड़ी कम . . . . . . . .
जोड़ दिये टुकड़े तेरी तस्वीरों के ,
नज़र आयेंगे तेरे, अब कम थोड़े कम
अब अपने सपनों से परेशां नहीं हम,
करवटें लेने लगे अब कम थोड़ी कम
अपने ही दर्द अब अज़नबी लगते है
अंजाने लगते हैं खुद को कम थोड़े कम
पेहरा तेरी यादों पर अब कम थोड़ा कम
लगता है खालीपन अब कम थोड़ा कम
जिक्र तेरा आये तो मुस्कराते हैं हम,
दिलगीरी के जिक्र अब कम थोड़े कम
अपने एहसास को आईना किये जो हम
तेरे बरबाद लगे अब कम थोड़े कम
नयी किताबें हाथों में लिये अब हम,
खुद से खुद को करते कम थोड़ा कम
आती है याद तेरी, अब कम थोड़ी कम . . . . . . . .
जोड़ दिये टुकड़े तेरी तस्वीरों के ,
नज़र आयेंगे तेरे, अब कम थोड़े कम
अब अपने सपनों से परेशां नहीं हम,
करवटें लेने लगे अब कम थोड़ी कम
अपने ही दर्द अब अज़नबी लगते है
अंजाने लगते हैं खुद को कम थोड़े कम
पेहरा तेरी यादों पर अब कम थोड़ा कम
लगता है खालीपन अब कम थोड़ा कम
जिक्र तेरा आये तो मुस्कराते हैं हम,
दिलगीरी के जिक्र अब कम थोड़े कम
अपने एहसास को आईना किये जो हम
तेरे बरबाद लगे अब कम थोड़े कम
नयी किताबें हाथों में लिये अब हम,
खुद से खुद को करते कम थोड़ा कम
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें