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हट के, हठ से


एक शख्स, एक तआरुफ़, एक तआल्लुक, 
एक रास्ता, एक वास्ता, तमाम अफ़साने, 


....the continuing saga of a spark

एक कोशिश, एक कशिश, एक ख्वाइश
पैमाना-ए-जाँ को एक हसीं आजमाइश
.
...smiling to life

नज़र कहीं भी हो पैरों में ज़मीन है, 
मीठी भी उतनी जितनी नमकीन हैं!

आईनों से कहा-सुनी कि कितने हसीन हैं,
शुक्र है फ़िर भी मेरी नज़रों के शौकीन हैं!





.....and to herself 

साथ कोई हो रगों से वाकिफ़ होते हैं,
कोशिशें यूँ कि अपने मन-माफ़िक होते हैं!
....walking her own path



अपनी यकीनी के पूरे उस्ताद हैं,
तकरीर कहिये तो कलाबाज़ हैं!


.....negotiating
इज़हार-ए-मोहब्बत के खासे कमज़ोर हैं, 
नहीं टिकेंगे वो जिसके दिल में चोर है!


.....to be her own self
न सरहदों के हैं न सरहदों में हैं,
अपना निज़ाम है अपनी जिद्दों के हैं!

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अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी ...

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