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पनपने के सच–बुढ़ापा

बचपन पनपता है, जवानी मचलती है बुढ़ापा ठहरता है, बुढ़ापा बुफे है उम्र का, इसमें सब शामिल है, बचपन की पुकार जवानी का जोश, गर आपको हो होश! समंदर है ये, लहरें जिसकी जवानी है, बूंद बूंद  बचपन की रवानी! बुढ़ापा, थकान नहीं है, रस्तों के मोड़ की पहचान है, ये आपके सोच का सच नहीं सोच, दुनिया की जागीर है, सही–गलत की जंजीर, अगर यूं बूढ़े हुए तो आप उम्र का शिकार हैं! बुढ़ापा साहिल है, तटस्थ लहरों को हर हाल भिगोने वाला, जोश जवानी का लिए जो आई उसे यकीन दिलाने वाला हां, तुमने डुबा दिया बुढ़ापा; वो जो न तौले, न मोले, न बोले, मंजूर करे, हर उम्र, हर हाल "हां, तुम चलते रहो" बचपन है तो बचे रहो, जवानी है तो बहो! बुढ़ापा भी मंज़िल नहीं है, एक उम्र का अंजाम, हां, जाम जरूर है, अगर खुद को मान लें, मान दें, सामान नहीं है जो उठाना है, बस एक और मोड़ है, हंसते हंसाते गुजर जाना है!

पनपने के सच – जवानी

बचपन पनपता है, जवानी मचलती है बुढ़ापा ठहरता है, जवानी में दिल बहुत मचलता है, मर्जी के रास्ते चलता है, अक्सर पिघलता है, अपने बस में है, पर बस कहां चलता है? जवानी जोश है, एक पुकार है, जिंदाबाद! जवानी तूफान है, कहां कोई थाम है, मुश्किल आसान है! बेलगाम है, एक ललक है, और लालच भी, उस हर ताकत का, जो लगाम लिए खड़ा है, क्योंकि उसे तूफान चाहिए, काम अपना आसान चाहिए! दुनिया को तूफान चाहिए, पर अपने लिए आसान चाहिए, इसलिए बना दिया है, उम्र बढ़ने को एक जंग, हमेशा चलने वाली लड़ाई, पहला नंबर आओ, पीछे रह गए तो और जोर लगाओ, आगे निकल गए तो, किसी की शाबाशी के गुलाम बन जाओ! लगे हैं सब नंबर वन होने में, ज्यादा हैं आप किसी के कम होने में? जवानी, खर्च होने की चीज़ नहीं तो गौर करिए, कोई आपको कमा तो नहीं रहा? नंबर – एक दो तीन गिनती बना तो नहीं रहा? बेलगाम रहिए, बेनाम सही, नाम होगा तो बिक जायेंगे, कामयाबी कांटा है मचली बाजार का, जवानी मचलती है, कैसे खुद को बचाएंगे?

पनपने के सच - बचपन

बचपन पनपता है, जवानी मचलती है, बुढापा ठहरता है! चलो बचपन पर लौट चलें, जम कर, जोश से, फूलें–फलें! अपना ही रास्ता बनें, बुनें! खिलना है, खुलना है, तमाम सच बदलना है हाल के, हालात के, उनसे जुड़े सवालात के, नज़रअंदाज़ जज़्बात के! पूछ लें वो सब सवाल जो डरे हुए है, क्योंकि बड़ों के जमीर मरे हुए हैं! उठा लें वो कदम जिसके नीचे की जमीन मालूम नहीं है, रास्ते ऐसे ही बनते हैं! आ जाएं साथ,  वही है बचपन की बात, कहां उसमें, दूसरे को कम करती मज़हब और जात? पनपना, फक्त जिंदा रहना नहीं है, बचपन की चाल चलिए खिलिए, खुलिए,  मिलिए हर पल से ऐसे जैसे ये पहली बार है, खेलिए, नौसिखिए बन, कुछ गलत नहीं, सब सीखने के नुस्खे हैं! दिल बचपन करिए, ज़िंदगी में जरा सचपन कीजिए! कोई द्वेष नहीं, घृणा नहीं, सब खेल हैं, मिलने के, दुनिया से,  उमंग से, चहकते हुए, साथ को बहकते हुए, जब तक है, तब है सौ फीसदी ! फिर कुछ और, या कुछ नहीं! न अपेक्षा , न उपेक्षा चलिए बचपन चलें?

इश्क़ समझ!

इश्क़ इज़हार है, समझदा र को इशारा नहीं, चलते बनिये जो उनको गवारा नहीं, खेलते खुजाते रहें, जिसे ज़ेब में रख्खा तमाशा नहीं,   इश्क़ जज़्बात है, मर्दानगी त्योहार नहीं, और बांट दे वो खुशी से  "हां", उनकी, दिवाली का खील बताशा नहीं! हंसकर बात करते हैं, ये हस्ती है उनकी, खुद को पसंद करते हैं, मुगालते हैं आपके, जो सोचे, आप पर मरते हैं!! इश्क़ साथ है,  दो लोगों की बात है, मिल्कियत नहीं, कोई मेरा हो गया, मान लेना, रिश्तों की नज़ाकत नहीं! इश्क़ सफ़र है, हमसफ़र सी बात है, मंज़िल नहीं, हासिल हो गया, बात ख़त्म, आशिक़ी की तर्ज नहीं! इश्क़ इज़हार है, इंकार है, इसरार है, इम्कान है, आसान नहीं, बात चलती रहे, हर सूरत जज़्बातों का मर्ज़ नहीं!

हमारी दुनिया_दारी, दुकानदारी!

हमारी  दुनिया, हमारे लोग हमारा घर हमारा परिवार हमारे साथी हमारा समुदाय हमारी दुनिया मेरा घर   तुम्हारा घर मेरे लोग तुम्हारे लोग मेरा परिवार तुम्हारा परिवार मेरे साथी तुम्हारे साथी मेरे बच्चे तुम्हारे बच्चे मेरी औरतें तुम्हारी औरतें मेरी इज्जत तुम्हारी इज्जत मेरा समुदाय तुम्हारा समुदाय मेरी ताकत तुम्हारी कमजोरी तुम्हारी ताकत मेरी कमजोरी मेरी बंदूक तुम्हारी बंदूक मेरी लड़ाई मेरी जीत तुम्हारी हार मेरी जीत   तुम्हारी जीत मेरी हार   तुम्हारा नुकसान मेरा फायदा मेरा नुकसान तुम्हारा फायदा तुम्हारी बर्बादी, मेरी ...? मेरी जीत? मेरी जीत मेरी हार! बिखरा समुदाय टूटे घर भूखे पेट अनाथ बच्चे कैसा परिवार ? मैं बर्बाद तुम बर्बाद कौन आबाद ? मेरी लड़ाई तुम्हारी लड़ाई किसकी कमाई ? मेरा पैसा तुम्हारा पैसा किसके पास ? मेरी भूख तुम्हारी भूख मेरे दर्द तुम्हारे दर्द मैं चुप तुम खामोश खामोशी में हम हमारे सच हमारी ज़िंदगी हमारा परिवार हमारे बच्चे   हमारी दुनिया !

ये क्या हो गया है?

जो मिट्टी को जान देता है, किसान ! उसपर गद्दारी का इल्ज़ाम हो गया है!! हक मांग रहा है बस अपने पसीने का, पर कान सल्तनत का ह राम हो गया है! पहुंचते नहीं हाथ दूर बहुत है, ये कैसा संविधान हो गया है? राम बोलने वाला ही भगवान हो गया है, यूं कत्ल कितना आसान हो गया है? अल्लाह का फ़ैसला अब भगवान करेगा, इंसानियत का काम तमाम हो गया है! फ़ैसला ये की तेरा मजहब क्या है , गुनहगार का नाम मुसलमान हो गया है इंसाफ देने वाले सब पंसारी बने हैं, वजन देख सारा हिसाब हो गया है! गलत है! पर भीड़ की अकीदत है ये, जो तोड़ा वही उनका मकान हो गया है!

कत्ल–ए –ख़ास!

हिन्दुस्थान ने भारत का कत्ल कर दिया, हथियार पर धर्म की धार थी, जय श्री जय श्री उसकी ललकार थी, जुबां पर खून तो पहले ही चढ़ा था, बहती गंगा में सब ने हाथ लाल किए, सवाल पूछने वालों के गले कमाल किए मिठाइयां बंट रही हैं, जश्न मन रहे हैं, भक्ति के नए मतलब निकल रहे हैं, अहंकार से अब भगवा मल रहे हैं, हरे को हरी के रंग में ढाल दिया है, हिंदुत्व ने बड़ा कमाल किया है!!

समंदर अहंकार!

साहिल डूब रहे हैं अपने ही समंदर से, और सर चढ़े समंदर को शऊर कहां? बिखर कर खो जाओगे समंदर, इल्म है? बूंद से सीखो ऐसी तुमको नज़र कहां? भूल कर शुरुवात, अंत को इतराते हैं? मील के पत्थर हो तुम, मुसाफिर कहां? पहाड़ों को जज़्ब करके अट्टहास क्यों? वही बन गए जिसको तुम गिराते हो? एक ही रंग में भिगो दिया सबको? मुरख! अपनी ही पहचान गंवाते हो? वो बाबरी थी ओ तुम भी बावरे निकले? कट्टरता कहते थे (जिसको) वही दिखाते हो

भक्ति से मुक्ति

तोड़ तोड़ के मस्जिद को मंदिर दिए बनाए, कत्ल कर "अल्लाह" का राम बड़ा बनाए! मस्जिद पर मंदिर बने, मंदिर पर सरकार, संविधान की कब्र खोद रहे, लोग लाख़–हजार! लोग लाख–हजार सर घुटने कर बन गए हैं भेड़, में–में मिमियाते, समझते खुद को भक्ति के वीर मस्जिद में दिखते नहीं, सिर्फ मंदिर में मिलते हैं, ऐसे भगवान तो फकत अज्ञानता में पलते हैं! पहले मंदिर टूटा था इसलिए अब मस्जिद तोड़ेंगे, रैट–रेस में हम सबसे अव्वल आ कर छोड़ेंगे! पंजा हो झाड़ू या कमल, जो मंदिर ईंट लगाए, कौमी राजनीति में फसल काट वो खाए! फसल काट वो खाए, सौ कतल भी माफ़, शैतान गद्दी बैठे, बेईमान को मिले इंसाफ!

बा_रतन

  दाढ़ी–टोपी कत्ल कर मन धीर लिया बनाए, फिर बा को रत्न मिले, सबका मन ललचाए, मन ललचाए गुंडन का सो मुंडन लिए कराए ढाई आखर कत्ल का, किए सो लड्डू खाए! लड्डू खाखा घी के गंगा लिए नहाए, दोष अगर कोई है वो पानी पानी हो जाए! पानी कर दिए खून का इतना उसे बहाए, प्रभुवर आईने देख कर चुल्लू पानी जाएं! पानी पानी हुए जो ताला मुंह पे लगाए, रामराज में बोल दिए तो जेल बुलावा आए! जेल हवा खाए जो भी सीधी रीढ़ दिखाए, दंगाई राजा भौंक के पिरजा भेड़ बनाए!

बेवजह सांसे!

  ज़िंदा हूं जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूं, अपनी बेशर्मी में पनाह लिए जा रहा हूं! उम्मीद भी नहीं बची और यकीन भी यतीम है, इस बेबसी को अपनी शमा किए जा रहा हूं! रोशनी भी है और तपिश भी अभी बाकी है, ख़बर नहीं किसको फना किए जा रहा हूं? जाहिर है वो सूरज भी रोशन होगा एक दिन, क्यों हालात को गुमां किए जा रहा हूं? नहीं आना है इस नामाकुल दुनिया में हरगिज़, क्यों फिर इतना पशेमान हुए जा रहा हूं? सिफ़र होने की तमाम कीमतें हैं इस उम्र, क्यों रिश्तों को सामान लिए जा रहा हूं?