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भक्ति से मुक्ति

तोड़ तोड़ के मस्जिद को मंदिर दिए बनाए,

कत्ल कर "अल्लाह" का राम बड़ा बनाए!


मस्जिद पर मंदिर बने, मंदिर पर सरकार,

संविधान की कब्र खोद रहे, लोग लाख़–हजार!


लोग लाख–हजार सर घुटने कर बन गए हैं भेड़,

में–में मिमियाते, समझते खुद को भक्ति के वीर


मस्जिद में दिखते नहीं, सिर्फ मंदिर में मिलते हैं,

ऐसे भगवान तो फकत अज्ञानता में पलते हैं!


पहले मंदिर टूटा था इसलिए अब मस्जिद तोड़ेंगे,

रैट–रेस में हम सबसे अव्वल आ कर छोड़ेंगे!


पंजा हो झाड़ू या कमल, जो मंदिर ईंट लगाए,

कौमी राजनीति में फसल काट वो खाए!


फसल काट वो खाए, सौ कतल भी माफ़,

शैतान गद्दी बैठे, बेईमान को मिले इंसाफ!


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