ज़िंदा हूं जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूं,
अपनी बेशर्मी में पनाह लिए जा रहा हूं!उम्मीद भी नहीं बची और यकीन भी यतीम है,
इस बेबसी को अपनी शमा किए जा रहा हूं!
रोशनी भी है और तपिश भी अभी बाकी है,
ख़बर नहीं किसको फना किए जा रहा हूं?
जाहिर है वो सूरज भी रोशन होगा एक दिन,
क्यों हालात को गुमां किए जा रहा हूं?
नहीं आना है इस नामाकुल दुनिया में हरगिज़,
क्यों फिर इतना पशेमान हुए जा रहा हूं?
सिफ़र होने की तमाम कीमतें हैं इस उम्र,
क्यों रिश्तों को सामान लिए जा रहा हूं?
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