रौशनी की कमी नहीं फिर उम्मीद क्यों लडखडाती है,
मील के पत्थर मक़ाम नहीं होते,
बाज़ार में क्यों ढूंढते हो?
सचाई, भरोसा, ईमान, दुकान नहीं होते
किस बोझ से झुके हो,
दिल के अरमान सामान नहीं होते!
आसमान खुद जमीन पर आता है,
सदियों से सावन कहलाता है
जीते हैं, इसलिए भाग रहे हैं
या भागने के लिये जीते हैं?
चूहे रेस नहीं लगाते जिंदगी जीते हैं.
कोई चाल चलिए अपने अंजाम पर पहुंचेगे
खरगोश होने के लिये कछुओं की जरुरत नहीं,
फुर्सत की सांस अहंकार नहीं होती!
सरल सा प्रश्न है !
आप जिंदगी भाग रहे हैं?
....या जाग रहे हैं?????
इस कविता के माध्यम से बहोत ही विचारणीय प्रश्न पूछे हैं आपने ......
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति