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दास्तान-ए-सहाफ़त!



सच्चाई जाहिर है पर जिक्र नहीं कोई चौपालो पर,
इस दौर की बातों के सिलसिले कुछ और हैं!

हर चोट खबर, हर खोट खबर, हर लूट, हर फ़ूट खबर,
घर के बाहर शैतान दुनिया, घर बैठे देखो खूब खबर!


ब्रेकिंग न्यूज़ का मुकाबला है, गिरेबान घुस के देखते है,
जनाज़ों, जख्मों औ हादसों पे अपनी रोटी सेंकते है!

खबरांदाज़ी है या मसला - ए – कबड़्डी है,
बने बकबकिये सब और खौफ़ फ़िसड़्डी है!




सारे सच इनको मालुम, और हर सच की कीमत भी, 
लहजे से जाहिर होती है पर खबरी की नीयत भी!


दास्तान-ए-सहाफ़त है या कोई फ़िल्मी तहरीर है,
गयी भाड़ में आँखों-देखी बस मनमानी तस्वीर है!

राय-मशवरा हर बात पे, ये खबरों के काज़ी है,
सुन रहे सब सुनने वाले, मिंया-बीबी राज़ी हैं।



निन्यान्वे फ़ीसदी सच काफ़ी नहीं,
आपकी मज़बूरियों को माफ़ी नहीं,
आप अपनी सच्चाईयों में गड़े है,
क्या उखड़ेंगे आप फ़क्त मुर्दे बड़े हैं!

"जो आप की नज़र में है, वही आज़ की खबर में है,
क्या समझें बारीकियों को ध्यान जिनका असर में है!"

खबर इश्तेहार बन गयी है, और इश्तेहार खबर है,
आलमगिरियत है या खला इखलाख़ी का असर है?





बेगर्ज़ी की बात में खुदगर्ज़ी का रवैया,
कौन बचाये जो खबरी बन बैठे खवैया?


सहाफ़त - जर्नेलिस्म, Journalism; तहरीर - आलेख, Script; आलमगिरियत - वैश्वियकरण, Globalization;
बेगर्ज़ी-तटस्थ, Neutral; खला- vacuum; इखलाख़ी-नैतिकता, Moral


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