सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

राय-मशवरा?



ताजा खबरों से क्यों बदबू आती हैं?
किस तहज़ीब की बात बतलाती है?

बद से बदतर हैं, ये
हालात, अक्सर हैं!
आज सड़क पर थे,
कल आपके घर पर हैं?

अपने से क्यों दूर हैं,
क्यों भेड़चाल मजबूर हैं?
सवाल पूछना भूल गए?
कही-सुनी के शूर हैं?



जानकारी के उस्ताद हैं,
किनारों के गोताखोर,
जो नज़र में सब सच है,
बस उसी का सब शोर!

खुद से खामोशी है,
या अजनबी मदहोशी?
नज़र नही आते कत्ल
या नज़रिया बहक गया?

बाज़ार है, सामान भी,
सच की दुकान भी,
ख़रीद रहे हैं सब, ओ
बस वही बिक रहा है!!


डर का ख़ामोशी,
न्यूज़ चैनल के शोर,
तिनके डूब रहे हैं,
किसके हाथों डोर?

दिमाग प्रदूषित है और 
सोच कचरा बनी है,
न जाने इंसान ने क्या क्या 
सच्चाई चुनी है!


सूफ़ियत तमाशा बन गयी है,
फ़कीरी धंधा बनी है,
बाज़ार ख़ुदा हुआ है ओ
सच्चाई दुकान है!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।