सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कुछ करते हैं!

 


इरादे ताकत करते है,
इरादों कि इबादत करते हैं,
जो सामने है वही सच है,
इस बात से हम बगावत करते हैं,




मोहब्बत ज़ाहिर करते हैं,
कलम सर को हाज़िर करते हैं,
उनकी बात उन्हीं को नाज़िर करते हैं,
कोई शक! काफ़िर करते हैं

 


पसंद, दावत करते हैं,
काम, कवायत करते हैं,
छुट्टी, शायद करते है,
कुछ नहीं तो करामत करते हैं! 



जो सोचते हैं सच करते हैं,
मुश्किलें आयें तो पच करते हैं,
शक सामने हो तो 'च्च' करते हैं
कभी कभी टू मच करते हैं!


रवायत को हम 'धत' करते हैं,
मज़हबी बातों को 'But' करते हैं,
आप करिये हम हट करते हैं,
बात सच है सपट करते हैं!




 

रास्तों को घर करते हैं,
मकाम साथ सफ़र करते हैं,
अकेले नहीं हमसफ़र करते हैं,
आईये अक्सर करते हैं


किसी से नहीं कंपेर करते हैं,
अपने यकीनों को जिगर करते हैं,
हो जायें आप बुलंद,
लगे नहीं वो नज़र करते हैं,






टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।