आत्मनिर्भर मजदूर घर से दूर,
अपने पैरों चले हैं, सरकारी फैंसले हैं?
ये कैसा सरकारी खेल है,
कमजोर है वो फेल है?
महंगी बड़ी रेल है,
सवालों को जेल है?
जाको मारे सरकारी नीती,
राख हवा में होई,
कदम कदम चल मरेगा,
चाहे मदद जग होई!
लोकतंत्र पर लॉकडाउन,
ये कैसी सरकार हुई?
मजलूमों से आँख फ़ेरती
क्यों ऐसी नाकार हुई?
वादे ईरादे हैं क्या?
या सिर्फ़ बातें हैं?
नीयत साफ़ नहीं,
एक यही सच बचा है!
बड़े बेगैरत हैं जो सरकार चलाते हैं!
सरकार ने अपने को बचा कर रखा है,
खुद से ही बस अच्छे दिन का वादा है!!
मूरख सी सरकार है,
कुछ कहना बेकार है!
भूखे को इज्ज़त नहीं,
हालात-ए-ज़ार है!
ख़ुद को ज़रा महान करते हैं!
सवाल पूछने का वक़्त नहीं,
सर-आंखों सरकारी फरमान करते हैं!
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