(नागरिकता कानून, दिल्ली चुनाव और दंगे)
नफ़रत के व्यवहार,
अब सरकारी हथियार हैं,
गद्दी पर बैठ मज़े लूटें,
अब ऐसे जिम्मेदार हैं!
परवा नहीं मज़लूम की,
कैसे ये हमदर्द हैं?
मुँह फेर कर बैठे है,
जो 56 इंच के मर्द हैं!
जो सामने है वो झूठ है,
सच! बस मन की बात है!
लूट गई दुनिया लाखों की,
ख़बर है, 'सब चंगा सी'!!
(ऊपर से ताली, थाली, दिया)
दिखावा है, भुलावा है,
जो सरकारी दावा है,
ताकत का नशा है और
चौंधियाता तमाशा है!
सरकार सर्वेसर्वा है,
सर्वत्र, सरसवार,
जिम्मेदारी की बात करी तो,
छूमंतर, उड़न छू, ओझल!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें