आज खाने में आम्रखण्ड रोटी हुई,
बेशरम सेहत थोड़ी और मोटी हुई!
अंगड़ाई ली और सोचा,
किसी की मदद की जाए,
धूप से बिटामिन डी ली जाए,
भूखे को दिया तो दुआ सच्ची आती है!
मजबूर मांगता भी ऐसे
जैसे हम भगवान हैं,
कानों में मिसरी डाले
इतना जो सम्मान है!
घर बंगला गाड़ी,
सूट साड़ी,इसमें दो चार सौ हज़ार
से अपनी ज़ेब को क्या फर्क,
चलिए इसी बहाने करें स्वर्ग!
वैसे भी हम काफी शरीफ़ हैं
अच्छे इंसान,
पढ़े लिखे मेहनती,
जैसे हमारे बाप
और उनके बाप!
अब जो बेचारे हैं वो तो
बेचारे हैं,
अशिक्षा के मारे हैं,
इनका क्या करें
सदियों से ये गरीब हैं,
पहले गाँव के गरीब
अब शहर के फ़क़ीर हैं,
समाज में ये तो होता है,
जब हमारे दादा गांव मेंमुखिया थे,
इनके परदादा
उनके सेवक दुखिया थे!
बड़े दयालु थे वो, इनके
पूरे परिवार को पाला!
चकाचौंध देखकर,
सोचते नहीं हैं ये लोग
पैसे के पीछे भागते हैं,
पर गरीब की किस्मत देखिए!
कौन समझाए,
मजदूरी कर के क्या तीर मारेंगे,
दान धर्म हमारी परंपरा है!देखिए, फ़ालतू बात नहीं,
हम जात-पात नहीं जानते,
मानते, ये शहर है,
यहां कौन देखता है!
सब अपनी रोज़ी-रोटी में लगे हैं!
इन लोगों ने शह्र आकर गलती कि,
वो ही ये लोग,
गांव में कुछ भी हो,
दो वक्त की रोटी तो मिल ही जाए है,
आके देखिए,
जानवर भी भूखा नहीं रहता,
दो रोटी कोई उसको भी डाल देता है!
फिर भी हमारी तो यही राय है,
हम को ही देखिए,
जब से लॉकडाउन हुआ है,
केवल एक बार पिज्ज़ा मंगाए हैं
हमको बहुते पंसद है!
पर अब समय की नज़ाकत
हम नहीं समझेंगे तो
हम पढे-लिखे लोग!
थोडा कहा, बहुत समझना,
वैसे भी अब नौ बज़ गया है!
आपने दिया खरीदे न!
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