सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सफ़र, नज़र, असर, सहर, कहर


एक और सफर नज़र में है, एक और कदम असर में है,
निकल पड़े हैं फिर रास्तों पे, एक और सुबह सहर पे है

पलटते रास्ते, थके हुए सवाल, ऊंघती उमीदें, दम तोड़ते जज़्बात,
बड़ते कदम, ललचाते प्रश्नचिन्ह, नज़र आसमान, ये एहसास

असीमित संभावनाओं से कोई अवकाश नहीं, फिर भी कोई प्यास नहीं
साहिल होने कि तमाम मुश्किलें हैं, क्या मुमकिन कोई आस नहीं?




क्या नया क्या पुराना है
करवट लिये दिन रात बैठे हैं लम्हे तैश में ऐठें हैं
अपनों से दूर हो कर अपने ही पास बैठे हैं

आपकी नजर है, आपकी परख है, आपकी कवायत है, आपका फरक है!
किसकी गरज़ है, किसको कसक है, तज़ुर्बा किसका है, किसका सबक है!

इंतज़ार पर यकीं 
कोने में छुप कर बैठी हैं शामे हंसीं,
नज़र के भागने से दिन नहीं बदलते

सच बड़े महीन होते हैं, नाज़ुक सारे यकीं होते हैं,
मेरे होने ना होने से क्या गर आपके पैर जमीन होते हैं!

आईना चेहरा नहीं दिखाता, सच्चाई दिखाता है,
दौर ही ऐसा है , सच पर किसको यकीं आये?

ख्याल सबके पैर पसारे हैं,
आप क्यों बैठे किनारे हैं
तजुर्बे आपके भी अल्फाज़ मांगते हैं
कौन कहता है आप बेचारे हैं !

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी ...

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!