रास्ते खत्म नहीं होते और इंतज़ार आख़ीर का
कटोरा हाथ में रखना,(?)देगा रवैया फकीर का(?)
रस्ते नए किये हैं तो क्यों इंतज़ार लकीर का
नज़रिया मुस्तैद फिर रंग चुनिए तस्वीर का
खुद ही अपने कटोरे में खैरात डालते हैं ,
फकीर कैसे जो खुद को पालते हैं
खाली हाथ भी किस्मत से मिलते हैं
आप क्यों मुट्ठी बंद किये चलते हैं?
गुम हो जाऊं हवा में तो दुनिया में क्या कम होगा,
खुश्क मौसम एक लम्हे को जरा नम होगा,
हवाओं के रुख तो यूँ भी रोज बदलते हैं
एक इल्ज़ाम है, जो मेरे सर शायद कम होगा
गुजरा जो जहाँ से, क्या रास्ता वीरान होगा,
भीड़ में शामिल हूँ, निकलना आसान होगा
अजनबियों को ऐसे भी कौन पहचानता है
वैसे भी मेरे हाथों में एक जाम होगा
मैं न रहूँ फिर भी मौसम बदलते हैं
मर्ज़ी है फिर भी साथ चलते हैं
जमीन-आसमान का फरक है मेरे होने में
तमाम मुश्किलें हैं वज़ूद खोने में
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