सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

फकीर की लकीर?


रास्ते खत्म नहीं होते और इंतज़ार आख़ीर का
कटोरा हाथ में रखना,(?)देगा रवैया फकीर का(?)
रस्ते नए किये हैं तो क्यों इंतज़ार लकीर का
नज़रिया मुस्तैद फिर रंग चुनिए तस्वीर का

खुद ही अपने कटोरे में खैरात डालते हैं ,
फकीर कैसे जो खुद को पालते हैं
खाली हाथ भी किस्मत से मिलते हैं
आप क्यों मुट्ठी बंद किये चलते हैं?

गुम हो जाऊं हवा में तो दुनिया में क्या कम होगा,
खुश्क मौसम एक लम्हे को जरा नम होगा,
हवाओं के रुख तो यूँ भी रोज बदलते हैं
एक इल्ज़ाम है, जो मेरे सर शायद कम होगा

गुजरा जो जहाँ से, क्या रास्ता वीरान होगा,
भीड़ में शामिल हूँ, निकलना आसान होगा
अजनबियों को ऐसे भी कौन पहचानता है
वैसे भी मेरे हाथों में एक जाम होगा


मैं न रहूँ फिर भी मौसम बदलते हैं
मर्ज़ी है फिर भी साथ चलते हैं
जमीन-आसमान का फरक है मेरे होने में
तमाम मुश्किलें हैं वज़ूद खोने में


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।