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जून, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज़िंदगी आसान - निशा आदित्य टाईप!

साथ आपका, सफ़र साथ का, ज़िंदगी इतनी आसान चाहिये! बहुत किया इंतज़ार ज़िंदगी, साथ साथ ही काम चाहिये! आपस में ही पटना-निपटना है! बस और क्या अब काम चाहिये? बचपन पास है, ज़वानी साथ है,  बस उतना ही सामान चाहिये! ढूँढ ली जगह दिल में रहने कि, हमको कहाँ कोई मकान चाहिये जिसको देखो ' हमें मालूम था' फ़िर भी सबको एलान चाहिये! इश्क़ लम्हा, हमसफ़री रास्ता है,  ऐसेइ थोड़े हमको प्लान चाहिये? जो है सो है, सीधी सी बात है,  इसमें क्यों कोई विज्ञान चाहिए? अपने हिस्से की दुनिया हम बदल लेंगे, अभी शुरू है बस थोड़ा टाइम चाहिए!

मोहब्बत फ़रीद!

सफ़र में तुमसे मुलाक़ात हो जाए, हमसफरी के ज़रा हालात हो जाएं! हम तो मुसाफ़िर हैं ज़िन्दगी के, बस उनके भी यही हालात हो जाएं!! मोहब्बत है झोली में और आरजू करते हैं, मेरी किसी ख़ासियत को वो मुरीद हो जाएं! यूँ तो हम अपने ही पैरों पर खड़े हैं, हसरत, की वो कंधो के करीब हो जाएं! यूँ हम अकेले ही अपनी नाक में दम करते हैं, जी करता है मेरी मुश्किलों की ख़रीद हो जाये! इस रस्ते आइये तो हम भी एक मक़ाम हैं, दुआ है, ये सफ़र आपको फ़रीद हो जाए! (farid -unique) इंतज़ार है पर हम कभी करते नहीं, कौन जाने कब, यकीं इतफ़ाक हो जाए! बेबाक़ी को मेरी बेसबरी मत समझिये, क्या हरकत जो होना है सो हो जाये!

शैतानी इंसानियत!!

एक दूसरे की जान लेते हैं, चलिए इंसान पहचान लेते हैं! अपनी ही वहशियत का शिकार है, तशदुद इसका अज़ीज हथियार है! इंसानियत कोई बड़ी कीमती चीज है, शायद इसलिए किसी तिज़ोरी बंद है! कुछ भी नामुमकिन नहीं इंसान को, तबाह कर देना अपने ही नाम को!  अपने गुनाह इतिहास में शान हैं, कोई और करे तो वो हैवान है! हर दौर में इंसानियत की फसल फलती है, उसे हज़म करके हैवानियत पलती है! सियासत कब्रों की खेती है, ज़मुहरियत में भी होती है! मानव ही मानव का शिकारी है, इंसानियत चीज़ बड़ी बेचारी है! ताकत के ज़ोर पर, बेहिसाब लोगों को मार डाला, मनुष्य ने प्राणी कहलाने का, अपना हक़ मार डाला!

लातों की बात!

पुरानी कहावत है 'लातों के भूत बातों से नहीं मानते' पर बातों के भूत अब कहते हैं लात मार के भगा दो! बड़ा कनफ़्यूज़न है? ये बात वाले हैं कि लात वाले हैं, या यूँ कहिये कि एक हैं सब बात वाले ही लात वाले हैं, इनकी बात लात है, (जगज़ाहिर है, 2 साल से पाकिस्तान की तरफ लात है) इनके ज़ज्बात लात हैं, (साध्वी, स्वामी, शाह को सुन लीजे) इनके सवाल-जवाबात लात हैं (सोशल मीड़िया पर इनकी ट्रोल सेना का लिखा गवाह है) इनकी परंपरा लात है, (सीता गवाह है) इनकी नीयत लात है (द्रोपदी गवाह है) इनकी सूरत लात है (गिरिराज, भागवत,तोगड़िया, कटियार) इनकी सीरत लात है (कर्नल पुरोहित, माया कोंड़ाणी) ज़ाहिर है इन्हें बात में भी लात आती है, अहंकार कहें या अंधकार जिस जनता को दाल-सब्जी लात मार रही है, उसी को कह रहे हैं, 'अच्छे दिन न आयें तो लात मार देना' किसको? खुद को? इतनी बड़ी बेफ़कूफ़ी की, बात पर भरोसा किया, अब क्या किस को दोष दें, खुद का ही सर पीटेंगे, या मर्द होंगे, जिनको अपने दर्द को छूना नहीं जानते, तो दारू पीकर लात ही चलाएंगे, अपने चारदीवारी के महफ़ूज़ माहौल में! प...

अमृता प्रीतम

अपनी ही खामोश समझ को नकार है मर्द को अगर औरत की ताकत से इंकार है! कोई लफ़्ज़ ज़ब ज़ुबां तलक आते हैं, खत्म हो जाते हैं! अगर बचा लिया किसी ने, तो एक कागज़ उतरते है,  और वहीं ढेर हो जाते हैं! रूह पर कुर्बान होने पेश,  लबों से लरज़ते हमारे नाम, एक मुक्कदस आवाज़ बनते हैं! (मुक्कदस - Sacred) ज़रा दूरतलक देखिये, सच्चाई और झूठ के बीच 'जगह' है!  ज़रा खाली! दर्द था, खामोशी से मेंने एक कश सिगरेट के माफ़ि खींच लिया, चंद शेर बचे थे, कुछ कलाम, जो छिटक दिये मेंने राख करके! एक बार एक हीर के अश्क, और 'हीर-रांझा' तुम्हारे, आज हज़ार आँखे रोती है,  बुलाती हूँ तुम्हें, वारिस शाह! (https://en.wikipedia.org/wiki/Ajj_aakhaan_Waris_Shah_nu) कोशिश है कि सुरज किरण बन तुम्हारे रंगों से लिपट जाउं, और जो तस्वीर तुम करते हो, उस में सिमट जाउं! खाक होने के बाद, ज़रा ज़र्रों को समेट एक रेशा बुन कर, बन कर, फ़िर उस छोर तुम्हें मिलुंगी! फ़िर तुम्हारी याद, आई फ़िर आग मेरे ओंठ आई, इश्क़ ज़हर का प्याला सही, मुझे फ़िर भर प्याला ही! बहुत अफ़साने हैं, जो कागज़ नहीं उतरे, वो दर...

राम के नाम के काम

मर्दानगी की दवा, नयी है हवा, प्रवीण है गवाह और उनका यकीं हिंदुओं में मर्दों की कमी, 500 रुपये में मर्द बनिए, माँ बहन की इज्ज़त का बजरंगी सरदर्द? अरे कड़वे सच सुन तबियत ख़राब हो गयी, चलिए हर मर्द....क्षमा कीजिए, हर मर्ज़ की दवा है, पतन_अंजलि, रामबाण इलाज़, सोचिये ! अब आपको राम भजने की जरुरत नहीं, अब राम खुद आपके पास हैं! कण कण में, साबुन शैम्पू में, आटा दाल, मैगी का भी रामकरण हो गया, बच्चे अब राम की शरण, बल्कि सारे जीव ही, कॉकरोच को भी मोक्ष है, दाने दाने पर खिलाने वाले का नाम, कपड़े कपडे पर राम पतन अंजलि कई दाग साफ़, कैसी ये हाथ की सफाई, सब योग का प्रकोप है, आपकी हर सांस में अनुलोम विलोम अब राम हैं, बिक रहे हैं या बेच रहे हैं? कौन है जो मतलबी रोटी सेंक रहे हैं? भुलाने का नहीं कोई काम, टीवी या अख़बार, इश्तेहार, इश्तेहार, चुकाना है आपको, बाबा के सन्यास का दाम, आम के आम गुठली के दाम, अब वो ही, राम के नाम आपको सरकार भी बेचेंगे, उल्लू बना आपके वोट खींचेंगे! बल्कि ये कहिये खींच लिया, कहिये रामराज्य का धंधा कैसा लगा?

भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार

भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बन गया है अमीर की थाली का अचार, बाबा की थाली का प्रसाद बन गया है, पैसा लेना संकुचित मानसिकता का करप्शन पर असली भ्रष्टता क्या है, साँठ-गाँठ, पीठ के पीछे हाथ, मैं ड़ॉलर ४० का कर दूँगा, तुम जीने की कला को फ़ला देना, फ़ैला देना, पैसे कि लेन-देन बच्चों का खेल है, गेम काँच की गोली, फटी ज़ेब ने पोल खोली, पर असली बेईमान, ताकत का इस्तमाल करने वाले लोग हैं, इशरत के हत्यारे, पांडे और बंजारा हैं? शाह की शय वाले, अडानी के जहाज सवार, गाय पर सवार, बीफ़ के व्यापार! लाल बत्ती पर सिग्नल तोडा, ज़नरल के टिकिट पर ए.सी. खोला ये सब आम आदमी की टुच्चयाई है, इसमें देश की बात कंहा आई है? बिना टेंडर के कॉण्ट्रेक्ट , बेनामी खाते में एड़जस्ट, टार के उपर सीमेंट की सड़कें, बोफोर्स बंदूकें और कारगिल के कॉफिन, सियासत में बैठे लोगों के यकीन, राम के नाम और बाबरी तमाम, ये है बईमानी, सबसे बड़ी, सबसे घातक, संविधान के साथ धोखेबाज़ी इससे ज्यादा क्या भृष्टता होगी? 84/2002/ हाशिमपूरा /मुम्बई और कई सरकारी दंगे, ये है बेईमानी, देश से, देश के विचार से, और इंसानियत से दग़ाबा...