भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बन गया है
अमीर की थाली का अचार,
बाबा की थाली का प्रसाद बन गया है,
पैसा लेना संकुचित मानसिकता का करप्शन
पर असली भ्रष्टता क्या है,
साँठ-गाँठ, पीठ के पीछे हाथ,
मैं ड़ॉलर ४० का कर दूँगा,
तुम जीने की कला को फ़ला देना, फ़ैला देना,
पैसे कि लेन-देन बच्चों का खेल है,
गेम काँच की गोली, फटी ज़ेब ने पोल खोली,
पर असली बेईमान,
ताकत का इस्तमाल करने वाले लोग हैं,
इशरत के हत्यारे, पांडे और बंजारा हैं?
शाह की शय वाले, अडानी के जहाज सवार,
गाय पर सवार, बीफ़ के व्यापार!
लाल बत्ती पर सिग्नल तोडा,
ज़नरल के टिकिट पर ए.सी. खोला
ये सब आम आदमी की टुच्चयाई है,
इसमें देश की बात कंहा आई है?
बिना टेंडर के कॉण्ट्रेक्ट ,
बेनामी खाते में एड़जस्ट,
टार के उपर सीमेंट की सड़कें,
बोफोर्स बंदूकें और कारगिल के कॉफिन,
सियासत में बैठे लोगों के यकीन,
राम के नाम और बाबरी तमाम,
ये है बईमानी, सबसे बड़ी, सबसे घातक,
संविधान के साथ धोखेबाज़ी
इससे ज्यादा क्या भृष्टता होगी?
84/2002/ हाशिमपूरा /मुम्बई
और कई सरकारी दंगे,
ये है बेईमानी, देश से,
देश के विचार से,
और इंसानियत से दग़ाबाजी,
दलित बच्चे को दुत्कारता द्रोण,
बेटी को पेट में मारता, वो कौन?
बच्चों के ऊपर हवस का हाथ,
लव ज़ेहाद, घर वापसी,
बजरंगी आतंक, संघीतंत्र
इस लिखे पर मत जाइए,
संविधान को ज़रा समझ जाइए,
अम्बेडकर के ज्ञान को,
बराबरी के सिद्धांत को,
समाजवादी जनतंत्र को
और फिर कहिये,
भ्रष्ट क्या है, कौन है?
वो सिगनल पर पचास रुपए लेकर
आपको छोड़ने वाला ठुल्ला,
या ज़ज, पोलिस, कलेक्टर, अखबार,
हमारे संविधान के 3 आधार,
जो ललचाये, डराए, मज़हबी अंधियाए
अपना उल्लू और औलाद सीधा करते हैं?
और साम दाम दंड भेद से
संविधान को लात मारते
हमारे जन प्रतिनिधि,
अपनी निधि को नदी बनाते,
घौटालों से घोंट कर,
काले शीशे वाली दानवीय कारों में
साइरन से सरकते,
लाल बत्ती से चमकते,
सर्वसुविधा संपन्न,
और आप आम,
चूसा हुआ,
लाल बत्ती पर खड़े,
हरे होने का इंतज़ार करते,
गाली देते हैं,
उस ट्रैफिक पोलिस वाले को,
जो अपनी बेटी के लिए दहेज़ समेट रहा है,
कहिये किसको भृष्ट कहेंगे
अपने जैसे किसी आम को,
या जात, धर्म, पार्टी देख वोट किये
जिताये,
अपने किसी खास को?
कहिये कौन है, क्या है भरष्टाचार,
और हाँ, इशारा हाथ से करिये,
ऊँगली से करेंगे तो,
चार आपका भेद खोल देंगी,
आप भागीदार हैं,
चौकीदार कब बनिए!!??
अमीर की थाली का अचार,
बाबा की थाली का प्रसाद बन गया है,
पैसा लेना संकुचित मानसिकता का करप्शन
पर असली भ्रष्टता क्या है,
साँठ-गाँठ, पीठ के पीछे हाथ,
मैं ड़ॉलर ४० का कर दूँगा,
तुम जीने की कला को फ़ला देना, फ़ैला देना,
पैसे कि लेन-देन बच्चों का खेल है,
गेम काँच की गोली, फटी ज़ेब ने पोल खोली,
पर असली बेईमान,
ताकत का इस्तमाल करने वाले लोग हैं,
इशरत के हत्यारे, पांडे और बंजारा हैं?
शाह की शय वाले, अडानी के जहाज सवार,
गाय पर सवार, बीफ़ के व्यापार!
लाल बत्ती पर सिग्नल तोडा,
ज़नरल के टिकिट पर ए.सी. खोला
ये सब आम आदमी की टुच्चयाई है,
इसमें देश की बात कंहा आई है?
बिना टेंडर के कॉण्ट्रेक्ट ,
बेनामी खाते में एड़जस्ट,
टार के उपर सीमेंट की सड़कें,
बोफोर्स बंदूकें और कारगिल के कॉफिन,
सियासत में बैठे लोगों के यकीन,
राम के नाम और बाबरी तमाम,
ये है बईमानी, सबसे बड़ी, सबसे घातक,
संविधान के साथ धोखेबाज़ी
इससे ज्यादा क्या भृष्टता होगी?
84/2002/ हाशिमपूरा /मुम्बई
और कई सरकारी दंगे,
ये है बेईमानी, देश से,
देश के विचार से,
और इंसानियत से दग़ाबाजी,
दलित बच्चे को दुत्कारता द्रोण,
बेटी को पेट में मारता, वो कौन?
बच्चों के ऊपर हवस का हाथ,
लव ज़ेहाद, घर वापसी,
बजरंगी आतंक, संघीतंत्र
इस लिखे पर मत जाइए,
संविधान को ज़रा समझ जाइए,
अम्बेडकर के ज्ञान को,
बराबरी के सिद्धांत को,
समाजवादी जनतंत्र को
और फिर कहिये,
भ्रष्ट क्या है, कौन है?
वो सिगनल पर पचास रुपए लेकर
आपको छोड़ने वाला ठुल्ला,
या ज़ज, पोलिस, कलेक्टर, अखबार,
हमारे संविधान के 3 आधार,
जो ललचाये, डराए, मज़हबी अंधियाए
अपना उल्लू और औलाद सीधा करते हैं?
और साम दाम दंड भेद से
संविधान को लात मारते
हमारे जन प्रतिनिधि,
अपनी निधि को नदी बनाते,
घौटालों से घोंट कर,
काले शीशे वाली दानवीय कारों में
साइरन से सरकते,
लाल बत्ती से चमकते,
सर्वसुविधा संपन्न,
और आप आम,
चूसा हुआ,
लाल बत्ती पर खड़े,
हरे होने का इंतज़ार करते,
गाली देते हैं,
उस ट्रैफिक पोलिस वाले को,
जो अपनी बेटी के लिए दहेज़ समेट रहा है,
कहिये किसको भृष्ट कहेंगे
अपने जैसे किसी आम को,
या जात, धर्म, पार्टी देख वोट किये
जिताये,
अपने किसी खास को?
कहिये कौन है, क्या है भरष्टाचार,
और हाँ, इशारा हाथ से करिये,
ऊँगली से करेंगे तो,
चार आपका भेद खोल देंगी,
आप भागीदार हैं,
चौकीदार कब बनिए!!??
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