सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

क़ाबिल सनम

ख़ुद से इंकार तो नहीं है, फिर भी,
ये कब कहा कि हमको हम चाहिए?

कोई दावत नहीं है दुनिया के गम को,
ओ ये भी नहीं कहते के कम चाहिए!

इंसानियत तमाशा नहीं है बाज़ार का,
क्यों गुजारिश के आंखे नम चाहिए?

इरादे आसमान पहुंच जाते हैं, तय बात!
मुग़ालता है के बाजुओं में दम चाहिए!

भगवान के नाम पर तमाम काम हैं,
इंसान को ज़िम्मेदारी ज़रा कम चाहिए!

कोई अलग है तो वो उन्हें नामंज़ूर है,
सरपरस्तों को मुल्क नहीं हरम चाहिए!

ताक़त से अपनी सब सच कर डालेंगे,
इंसाफ़ नहीं फ़क्त उसका भरम चाहिए!

क़ुबूल है कहने वालों की कीमत बड़ी,
उनको कहाँ क़ाबिल सनम चाहिए?

तमाम हैं हम फ़िर भी अकेले हैं,
कारवाँ होने को दूरी कम चाहिए!

उम्मीद जिंदा भी है और होश भी,
कोई कह दे बस के हम चाहिए!



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।