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क़ाबिल सनम

ख़ुद से इंकार तो नहीं है, फिर भी,
ये कब कहा कि हमको हम चाहिए?

कोई दावत नहीं है दुनिया के गम को,
ओ ये भी नहीं कहते के कम चाहिए!

इंसानियत तमाशा नहीं है बाज़ार का,
क्यों गुजारिश के आंखे नम चाहिए?

इरादे आसमान पहुंच जाते हैं, तय बात!
मुग़ालता है के बाजुओं में दम चाहिए!

भगवान के नाम पर तमाम काम हैं,
इंसान को ज़िम्मेदारी ज़रा कम चाहिए!

कोई अलग है तो वो उन्हें नामंज़ूर है,
सरपरस्तों को मुल्क नहीं हरम चाहिए!

ताक़त से अपनी सब सच कर डालेंगे,
इंसाफ़ नहीं फ़क्त उसका भरम चाहिए!

क़ुबूल है कहने वालों की कीमत बड़ी,
उनको कहाँ क़ाबिल सनम चाहिए?

तमाम हैं हम फ़िर भी अकेले हैं,
कारवाँ होने को दूरी कम चाहिए!

उम्मीद जिंदा भी है और होश भी,
कोई कह दे बस के हम चाहिए!



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