सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

चाल चलन!

यूँ हालात है और नदारत सब सवाल है,
कौन चल रहा है और किसकी चाल है?

नज़र आता है और सबको मलाल है?
"यही होता आया" किसकी मज़ाल है?



सबको लगता है के उनका दिल साफ है!
नज़र फेर ली है और अपना खून माफ़ है?

ताकत सच है कमज़ोर का क्या हक़ है?
पैदाइशी बराबरी ये भी एक कमाल है!!


भक्ति धर्म है और चौतरफा कचरा कर्म है,
चौखट पर सर है और कलयुग काल है?

नफ़रत पल रही है ओ शिकारी शिकार हैं,
गुस्सा सभी को है और ये भेड़चाल है!!


देवघर एक धर्मस्थल श्रद्धालुओं के कचरे से लिप्त
धर्मभक्ति, देशभक्ति आज दोनों बेलगाम हैं,
गुंडों की टीम है और सियासत कप्तान है!!


(देवघर, झारखंड में 10 दिन गुजारे, सवाल दिमाग में आये, वहां धार्मिक टूरिस्ट के फैलाए कचरे से, ये वही लोग हैं जो राम मंदिर चाहते हैं? वही लोग जो स्वच्छ भारत को तत्कालीन सरकार की उपलब्धि मानते हैं। वही लोग अपनी सोच और कर्म से भारत को प्रदूषित तो नहीं कर रहे?)




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।