मुझे खोना नहीं आता
'मैं' हूँ पर होना नहीं आता,
चादर बहुत हैं सोने को,
ओ मुझे बिछौना नहीं आता
गम हमको भी हैं तमाम,
उनके कंधे रोना नहीं आता
अकेले भी अच्छे हैं बहुत,
गोया हमें खोना नहीं आता!!
उनकी एक ही शिकायत बस,
जहां हैं वहां होना नहीं आता!
आख़िर भूल जाते हैं सब, सबको,
हमें किसी का होना नहीं आता!
फर्क पड़ता है, क्या फर्क पड़ता है?
क्यों हमें हक़ीकत होना नहीं आता?
खुश होंगे सब इसलिए कह दें? हमें
बातों को चाशनी डुबोना नहीं आता
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